Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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आपके जीवन में कई ऐसे चमत्कार हुए हैं। जिसकी गणना हम क्रोड़ों जिव्हाओं से भी नहीं कर सकते है। आपके त्याग और साध्वाचार के कठिन नियमों का पालन देखकर बडे-बडे क्रुर, हिंसक भयानक पशु भी अपनी क्रुर वृत्ति को छोड़कर नत-मस्तक हो जाते थे। एक बार पूज्य गुरुदेव ने जालोर के पहाड़ (स्वर्णगिरि तीर्थ) में अपनी साधना करने की ठानी। इस पहाड़ में एक शेर रहता था। भक्तों ने बड़ा आग्रह किया परन्तु गुरुदेव ने एक न मानी। रात को जहाँ पूज्य गुरुदेव ध्यानावस्था में थे। नवकार मंत्र का जाप कर रहे थे। वहाँ शेर चुपचाप बाहर बैठकर सुन रहा था। जब दूर से यह हाल लोगों ने देखा तो बड़े घबराये। कुछ समय पश्चात् जैसे ही गुरुदेव का जाप बन्द हुआ कि शेर चुपचाप उठकर चला गया। यह था पूज्य गुरुदेव का चमत्कार।
परम पूज्य गुरुदेव की दिव्यता और भव्यता अनौखी क्षमता के तारों से सुबंधित मधुर-स्वर लहरियों से आज भी झनझना रही है। आपकी करूण्य कणिका के सौरभ की अनुभूति नवागन्तुक व्यक्ति को प्रथम दर्शन मात्र से ही हो जाती है। पूज्य गुरुदेव का जीवन-चरित्र भक्तों के लिए अमृत है। समाज के लीए संजीवन है और विश्व की भटकती जनता के लिए जगमगाता प्रकाश पूंज है।
इस प्रकार पूज्य गुरुवर की अनेक विशेषताएँ है। उनकी ओजस्विता और तेजस्विता अपने एवं समस्त मानव मात्र के लिए कल्याणकारी हुई। मैं उन महान् विरल विभुति को, जो पोष शुक्ला सप्तमी को मोहनखेडा स्थल पर स्वर्गवासी हुए है अत: भावरूपी पुष्पो को समर्पित करते हुए हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करती हुं। ऐसे युग प्रवर्तक, युग पुरुष, युगवीर गुरुदेव के चरणों में श्रद्धायुक्त नमन करती हैं।
• इच्छित कार्य सिद्ध न होने पर अथवा मनोकामना पूर्ण न होने पर या स्वयं के प्रयत्न असफल हो जाने पर ज्ञानी जन भाग्य को दोष न देकर अपनी कार्य प्रणाली की गल्तियों, भूलों पर ध्यान देकर संशोधन करते हैं। किंतु अज्ञानी व्यक्ति अपनी निष्फलता का दोष भाग्य या दूसरे सिर मढते हैं। जैसे हारा हआ जुआरी अपनी भूल या गलती पर ध्यान देकर सामने वाले को दोष देता है।
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जहाँ विवेकयुक्त ज्ञान हो, सम्यग्ज्ञान हो, वहाँ अभिमान, दंभ, हिंसा, वैर, ईर्ष्या-द्वेष, ममत्व होगा ही नहीं।
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