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कालिदास पर्याय कोश विभक्तानुग्रहं मन्ये द्विरूपमपि मे वपुः।। 6/58 मुझे ऐसा जान पड़ता है, कि आप लोगों ने मेरे चल और अचल दोनों शरीरों पर अलग-अलग कृपा की है। इदंतुने भक्ति ननं सतामराधनं वपुः। 6/73 आपका यह चल शरीर भक्ति से ऐसा झुका हुआ है, कि सज्जन लोग आकर इसकी पूजा किया करते हैं। भाव साध्वस परिग्रहादभूत्कामदोहदमनोहरं वपुः। 8/1 इनके इस प्रेम और झिझक से भरे सुन्दर शरीर को देख-देखकर महादेव जी इन पर लट्ट हुए जा रहे थे। संध्ययाप्यनुगतं रवेर्वपुर्वन्द्यमस्त शिखरे समर्पितम्। 8/44 देखो ! पूजनीय सूर्य अस्ताचल को चले, तो सन्ध्या भी उनके पीछे-पीछे चल
दी।
6. शरीर :-[शू+ईरन्] काया, देह।
येदेव पूर्व जनने शरीरं सा दक्षरोषात्सुदती ससर्ज। 1/53 जब से सती ने अपने पिता दक्ष के हाथों महादेवजी का अपमान होने पर क्रोध करके यज्ञ की अग्नि में अपना शरीर छोड़ा था। तस्याः करिष्यामि दृढ़ानुतापं प्रवाल शय्याशरणं शरीरम्। 3/8 मैं उसके मन में ऐसा पछतावा उत्पन्न करता हूँ कि वह अपने आप आकर आपके पत्तों के ठण्डे बिछौने पर लेट जायगी। आसीन मासन्न शरीरपातस्त्रियम्बकं संयमिन ददर्श। 3/44 पत्थर की पाटियों से बनी हुई चौकी पर महादेव जी समाधि लगाए बैठे हुए हैं। तदानपेक्ष्य स्वशरीरमार्दवं तपो महत्सा चरितुं प्रचक्रमे। 5/18 तब उन्होंने अपने शरीर की कोमलता का ध्यान छोड़कर बड़ी कठोर तपस्या प्रारंभ कर दी। तपः शरीरैः कठिनै रूपार्जितं तपस्वितां दूरमधश्चकार सा। 5/29 कोमल अंगों को तपस्या से रात दिन सुखाकर पार्वती ने कठोर शरीर वाले तपस्वियों को भी लजा दिया। विवेश कश्चिज्जटिलस्तपोवनं शरीरबद्धः प्रथमाश्रमोयथा। 5/30 गठीले शरीर वाला एक जटाधारी ब्रह्मचारी उस तपोवन में आया, वह ऐसा जान पड़ता था, मानो साक्षात् ब्रह्मचर्याश्रम ही उठ चला आ रहा हो।
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