Book Title: Jivanushasanam
Author(s): Devsuri
Publisher: Jagjivan Uttamchand Shah

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८) सद्धाबुढी रन्नो पूयाए थिरत्तणं पभावणपा । पडिवाओ य अणत्थे अत्था य कया हवइ तित्थे ।। रनो सदा वढिया भवइ । चेइयपूया थिरीकया भवइ, तीर्थ प्रभावितम्, ये चाहेच्छासनप्रत्यनीका बहुजने दोषान् ख्यापयन्ति एवंविधानामनांनां प्रतिघातः कृतो भवति । आस्था नाम स्वपक्षपरपक्षाणां अर्हत्कृते तीर्थे बहुमानत्वमुत्पादितं भवति । निमंतणं । सन्नित्ति सावगा वाइ एए दोवि दारे एगट्टे वक्खाणेइ, एमेवय गाहा" एमेव य सन्नीण वि जिणाण पडिमासु पढपपट्टवणे । _मा परवाई विग्धं करेज वाई तो विसइ ॥" कंठ्या । सावओ कोइ पढमं जिणपडिमाए पट्ठवणं करेइ ! वाइणा य पविठेणं इमे गुणा-परवाइनिग्गहं दळु नय 'धम्माण' गाहा नयधम्माण थिरत्तं पभावणा सासणे अ बहुमाणो। अभिगच्छंति य विउसा अविग्धपूयाए सेयाए । कंठ्या । सेयाएत्ति । अविग्धेणं पूआए कयाए सपक्खस्स इहलोए परलोए य सेयं । इह लोऐ असिवाइउवदवा न हुंति, परलोए तित्थगरपूयाए दरिसणविसुद्धी निधत्तिया भवइ । खरगत्ति दारं । इयाणि 'आयाविंति' गाहा आयाविति तवस्सी भावणया परप्पवाइणं । जइपरिसावि महिमं उर्वति कारिंति सड्ढा य ।। कंठ्या । कारिंति सहायत्ति । जइपरिसा तवस्सिणो उति, तओ सावगा महिमं कारिंति कारविंति य । इयाणि धम्मकहित्ति दारं । ' आयपर ' गाहा आयपरसमुत्तारो तित्थविवुड्ढी य होइ कहयते । अन्नोन्नाभिगमेण य पूयाथिरया सबहुमाणो ॥ For Private And Personal Use Only

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