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जेनेत का जीवन-दर्शन
वस्तुरूप प्रदान करने के प्रयत्न मे तक ओर बुद्धि का पोश हो जाना स्वाभाविक है । न्यूटन को सबुद्धि के प्रावार पर गुरुत्वाकापणी शशित ना बोध प्राप्त हुआ था किन्तु बुद्धि के द्वारा उसने गगन गिबात का विनाम किया था । विज्ञान और दशा मे यही म। भेद है कि ज्ञानि। गग को आशिक रूप मे अथवा खण्ड-खण्ड करके देखता है, for दाई ।। गाय का समग्र रूप मे साक्षात्कार करता है। भारतीय ऋपि ओर साचा पा से उन्होने साधना की चरम सिद्धि पर पड़चक र मन्त्र का साक्षात्कार किया या अन्तनयनो से दर्शन किया था, इसलिए उस सत्य का जो सप उपस्थित किया है उसे दर्शन कहना उचित ही है।"
भारतीय दशन और पाश्चात्य फिलासफी मे अन्तर है। भारतीय दार्शनिक आत्मशुद्वि के माग से ही आत्म साक्षात्कार का प्रयत्न करता है। पाश्चात्य दाशनिको ने प्रात्मशुद्वि को प्रश्रय दिया है । उहोने तक की तुला पर अपनी मान्यताप्रो का प्रतिपादन किया है। वस्तुत फिलासफर को प्रा गा वि पिण प्रधान होती है और दाशनिक की पद्वति मरणागक' । भारतीय दार्शनिका ने तक के आधार पर मत्य का प्रतिपादही या व पापा और विश्वास के प्राचार पर मत्य का माक्षात्कार किया। भारतीय पायनिता का लक्ष्य गत्य के बोध द्वारा मोक्ष की प्राप्ति करना है।
दर्शन शास्त्र का कार्य मानव जीवन की सापेक्षता में पिता होता है । जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नही है, जिसका दानि । विजन सभवन हो सके । मानव जीवन की समग्रता का बोध प्राप्त करने के forv उसम विविध राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक प्रादि पहलुओ का अपयन अनिबाय है, किन्तु विशुद्व दार्शनिक और साहित्यिक दार्शनिक की प्रतिया में मन्नत अन्तर दृष्टिगत होता है। 10 देवराज के अनुसार दशन शारन की शेली गाहित्य से भिन्न है । कवि, उपन्यासकार जीवन पर विचार करने में किसी नियम का पातन नहीं करते। दाशनिक चिन्तन नियमानुमार होता है। माहित्यकार किसी वस्तु या व्यक्ति के इन्द्रियगम्य वाहा अगा को ही अपने विवेचन का विषय नहीं बनाता वरन् वस्तु और व्यक्ति के मन म अन्तनिष्ठ आत्मा को समझने का प्रयास करता है । अपने इस प्रयाग में ही वह अपनी दाश निक दृष्टि का परिचय देने में समर्थ होता है।
जैनेन्द्र ने अपनी अप्रकाशित पुस्तक 'समय, समस्या और सिद्धात' में 'दशन'
१ डा० देवराज 'भारतीय दर्शनशास्त्र का इतिहास', पृ० १ । २. डा० देवराज 'भारतीय दर्शनशास्त्र का इतिहास', पृ० १८ ।