Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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शके मछे, कारण के स्तुति करवाथी जेनी स्तुति थाय छे ते पोते आपण ने स्तुति करनारने कांई पण आपता नथी । कोई प्रमाण पत्र के अधिकार स्तुति करनारने जेनी स्तुति थाय छे ते आपी शकता नथी । ऊँच नीच पणुं, सुख दुःख सिद्ध पदके नरकमां नारकीपणुं ए कोई ना आप्या अपाता नथी, एतो जेवो जेनो पुरुषार्थ तेवुं तेने परिणाम | श्री वीतराग प्रभु पोते पण एज कहे छे के "अप्पा कत्ता विकत्ताय दुहाण य सुहाण य” अर्थात् सुख दुःखना कर्त्ता अने कर्म भोक्ता आत्मा पोतेज छे, अन्य कोई नथी । माटेज फरीएज अध्ययनमां प्रभुए कह्युं के "अप्पा मित्तममित्तं च दुपट्ठियं सुपट्ठियं" पोतानो मित्र अने शत्रु आत्मा पोतेज छे, अन्य कोई नहिं । जो तीर्थंकर प्रभु पोते कोई ने देव नारकी बनावी शकता होत तो श्रेणिक राजा श्री कृष्ण वासुदेव अने एक अनेकने नर्कना दुःखो भोगववा पड़तज नहिं, एटले सुख दुःख ए स्वउपार्जित वस्तु छे, स्थिति छे परन्तु जे ध्येय जे जेना गुणानुवाद थाय छे, ते ध्याता ना आदर्श रूपे होय छे अने आदर्शने पहुंचवा माटे तेनो स्मरण निरन्तर जोइयेज, माटे गुणग्राम स्तुतिनी महत्ता दरेक धर्मना पंथा आचार्य देवो अने अवतारी आत्माओए गाई छे अने ते बराबर छे, परन्तु ते स्तुति ते गुणानुवाद देहना नामना के जड़ वस्तुना नहिं पण चैतन्यना कारण के अनन्त ज्ञान दर्शननो धारक सिद्ध स्वरूपी अने शाश्वत गुण नो धारक आत्मा छे, नहिं के देह अथवा जड़मूर्ति । जड़ तो नाशवंत अने त्याज्य वस्तु छे, तेनी उपयोगिता तो तेमां अनन्त गुण धारक आत्मा होय त्यां सुधीज पछी जराए नहिं । जो जड़ वस्तु पूजनीय वंदनीय होयतो श्री तीर्थंकर देव ना स्थूल उदारिक देह मांथी आत्मा परम पदे पहोंच्या पछी ते शरीरने देवो पोतानी शक्ति वडे तेने हजारो वरस सुधी जालवी राखत, अने तेनी पूजा अर्चना करत, पण
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