Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सामान्य बुद्धि वालो मनुष्य पण सहेजे समजी शके तेम छे के कोइनु पण खराब करवुं नहिं एनो अर्थ ए नथी थतो के तेनुं पूजन करवुं ? ज्ञानीओ अने आत्म कल्याण ने इच्छनाराओ पापिओ नो पण अनादर न करवानुं वारंवार समजावे छे तेनी अवगणना - तेनुं अपमान के तेनो तिरस्कार न करवानुं पोकारी पोकारी ने कहे छे, पण एना सामे एम कहेता नथी के पापिओने पगे लागों के तेनुं पूजन अर्चन करो, तेने वंदनादि करो एम कदी कहेताज नथी, अने कहे पण नहिंज एक वस्तुना अनादर न करो एटले तेनो आदर करो एम नज होय, अनादर करवा थी, लाभ नथी तेम जे वस्तु आदरणीय नथी तेनो आदर नज करवो पण उपेक्षा वृत्तिज राखवी, "देवाणं आसायणाए" नो आ हेतु छे, अने ते बराबर छे। कोई नुं खराब न करवुं एनो अर्थ ए नथी थतो के तेनी पूजा करवी । मनुष्य लोकमां विशेषे करीने खास करीने व्यंतर देवनो निवास छे, अने देव जाति मां ए हलकी जातिनां छे, एना संसर्ग मां मनुष्यो ने हरवखत आववुं पड़े छे, कारण के ए व्यंतर देवो ज्यां ज्यां रखडता होय छे, कोई स्थल, कोई मन्दिर, कोई पण मूर्ति वगेरे के जेने थोड़ा या झाझा मनुष्यो अथवा स्थूल स्वार्थ ने वश पडेला मनुष्यो ए स्थल अथवा मूर्ति वगेरे ने पूजता होय तेवा कोई पण स्थले ते व्यंतरदेव घुसी गयेल होय, कारण के ते मान पूजा ना बहुज अभिलाषी होय छे ए पोतानी अभिलाषा ने तृप्त करवा माटे आवा स्थलो ने पोताना निवास स्थान बनावे छे, ए रीते पोतानी पूजा थती पोते माने छे एवा स्थलोना आशातना करवाथी व्यंतरादि देवोके जे हलका स्वभाव ना छे, ते देवोने दुःख थाय, पोतानु अपमान थयुं माने अने एथी ए अजाणता पण आशातना करनारने दुःख आपे, अने तेथी चारित्र धर्ममां धक्को लागे माटे प्रभु श्रीए फरमाव्युं के देवोनी आशातना करवी नहिं, पण
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