Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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[25] ********************************************* सुरभिणागंधोदएणं पक्खालित्ता अग्गेहिवरेहिं गंधेहिंमल्लेहिं अच्चेति २ सुद्धवत्थेणं बंधित्ता रयण करंडंगसि पक्खिवति २ हारवारिधारा सिंदुवार छिन्न मुत्तावलिप्पगासाई सुयवियोग दूसहाई असुइ विणिमुयमाणि २ एवं वयासी।"
“एसणं अम्हं जमालिस्स खत्तिय कुमारस्स बहुसु तिहिसुय पव्वाणीसुय उस्सवेसुय जन्नेसुय छणेसुय अप्पच्छिमे दरिसणे भविस्सति तिकट्ट ओसिसग मूले ठवेति।" ___अर्थ - जमालि क्षत्रिय कुमारना निष्क्रमण योग्य अग्र केशो चार आंगल मुकीने कापे छे, त्यारपछी जमालि क्षत्रिय कुमारनी माता हंसना जेवा श्वेत पट साटक थी ते अग्र केशोने ग्रहण करे छे, ग्रहण करीने ते केशो ने सुगंधी गंधोदक थी धुए छे, धोइने उत्तम अने प्रधान गंध तथा माला वडे पूजे छे, पूजीने शुद्ध वस्त्र वडे बांधे छे, बांधीने रत्ना करंडिया मां मूके छे, त्यारपछी जमालि क्षत्रिय कुमारनी माता हीर पाणीनी धारा सिंदुवार ना पुष्पो अने तुटी गयेली मोतीनी माला जेवा पुत्रना वियोग थी आंसु पाडती आ प्रमाणे बोली के "आ केशो अमारा माटे घणी तिथिओ, उत्सवो, यज्ञो, अने महोत्सवो मां जमालि कुमारना वारंवार दर्शन रूप थशे” एम धारीने तेने ओशिका ना मूलमां मूके छे।
रागने वशथई माता पुत्रना केशो नो पूजन करे तो पछी श्री जिनेश्वर देवनी दाढ़ानें कोई पण पूजन करे तो तेथी कोई प्रतिमा पूजन सिद्ध थतुं नथी, अर्थात् दाढ़ा पूजन ए प्रतिमा पूजन नी प्रतिती नथी।
देवाणं आसायणाए “देवाणं आसायणाए" शब्द नो आधार लई मूर्ति पूजा सिद्ध करवानो प्रयत्न बालकनी रमत जेवोज छे के बीजुं कांई? सामान्य रीते
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