Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दाढ़ा पूजनीक छे तो ते जिनेश्वर देवनी प्रतिमा पूजनीक केम न होय ? आवा प्रकारनी दलील करी सामान्य प्रजा जनने मूर्ति पूजा साची छे एम ठसाववा प्रयत्न करे छे पण ए वात बराबर नथी अने तो श्री दोशीए बहुज स्पष्टता थी समजावेल छे, विशेषमां विचारिए तो एना माटे वे बावतो विचार वानी रहे छे ।
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(१) ए दाढ़ाओ जिनेश्वरदेव तरीके वंदनीय शरीरनीज हती एटले रागवश मनुष्यो पूजनीय पुरुषनी - पोतानी वस्तुनी कदाच महत्ता करे तो बनवा जोग छे, अने ते पण धर्म दृष्टिए नहिं, पण एकान्त रागनी दृष्टिएज । ज्यारे प्रतिमा श्री जिनेश्वरदेवनी नथी, प्रति मूर्ति एतो काल्पनिक छे अने ते काल्पनिक वस्तुने धर्म दृष्टिए पूजवा वांदवा थी कल्याण थाय एतो कोई पण विचारवन्त मनुष्य कबूलनज करे ।
(२) दादानी पूजा कुलाचार वंश परम्परागत रिवाज मुजब पण कराय छे। कारण के जे देव सम्यक्त्वी न होय ते पण दादानुं पूजन प्रणालिका ने वशवर्ति पणे करे छे, एटले मिथ्यात्वी देवपण ए दादानुं पूजन करेछे, एटले ते जिनेश्वरदेव प्रत्येना भक्तिभाव के श्रद्धा थी नहिं पण व्यवहार साचववा अर्थेज सिवाय कांई नहिं । ए ऊपर थी सहेजे समझी शकाय छे के दाढ़ानी पूजन थी प्रतिमा पूजननी वातने जराए पुष्टि मलती थी, कारण के रागादिने वशवर्ति कोई पण मनुष्य के देव पोताना प्रिय जननी कोई पण महत्ता जालवेज, ए एक सामान्य बात छे। श्री भगवतीजी सूत्रमां श्री जमालिना अधिकारे पाठ छे के -
" जमालिस्स खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तेणं चउरङ्गल वज्जे निक्खमणययोगे अग्ग केसेकप्पड़ तएणं सा जमालिस्स खत्तिय कुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं अग्ग केसे पडिच्छड़ अग्ग के से पडि च्छित्ता सुरभिणागंधोदएणं पक्खालेइ
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