Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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6/जैन विधि-विधानों का उद्भव और विकास
प्रवृत्तिमूलक- निवृत्तिमूलक परम्परा
यह उल्लेख्य हैं कि प्रवर्त्तक (वैदिक) और निवर्त्तक ( श्रमण ) धर्म परम्परा में विधि-विधानों का उद्भव एवं विकास किस' प्रक्रिया के आधार पर और किस क्रमपूर्वक हुआ? इस सम्बन्ध में डॉ. सागरमल जी जैन ने दो सारणियाँ निर्मित की हैं जो प्रवर्त्तक और निवर्त्तक धर्म के विकास की प्रक्रिया को समझ सकने में अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। प्रथम सारिणी इस प्रकार है।
-
( प्रवर्तक धर्म)
देह
1
वासना
I
भोग
|
अभ्युदय (प्रेय) 1
स्वर्ग
一一
प्रवृत्ति
प्रवर्त्तक धर्म
I
मनुष्य
9
जैन धर्म की ऐतिहासिक विकास-यात्रा ले. डॉ. सागरमल जैन, पृ. ५
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( निवर्त्तक धर्म)
चेतना
I
विवेक
विराग (त्याग) I
निःश्रेयस्
I
मोक्ष (निर्वाण ) 1
संन्यास
I
निवृत्ति
निवर्त्तक धर्म I
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