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भी है। मूल में जो कुछ कहा गया है वह युक्ति सिद्ध है इस वस्तु को प्रकट करने के लिये जहां तक हो सका है वहां तक विवेचना को सरल रखने का यत्न टीकाकारने किया है ।
चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी स्थापित श्री संघ चार प्रकार का है, १-साधु २-साध्वी ३-श्रावक और ४-श्राविका । वर्तमानकाल में धावक और श्राविका गण में जैन तर्क के अभ्यासी हैं पर उनकी संख्या बहुत अधिक नहीं है। साधु और साध्वी गण में तर्क का अभ्यास प्रायः होता रहता है। आरंभ में बहुत अभ्यासियों को तर्क की प्रक्रिया कठिन प्रतीत होती है। विभिन्न काल के ग्रन्थकारों ने तक का स्वरूप विभिन्न रूपसे प्रकट किया है । नव्य न्याय की शैली के आविर्भाव से पहले ग्रंथों में तर्क का स्वरूप गंभोर होने पर भी अत्यंत कठिन नहीं था । नव्य न्यायकी रीतिका समावेश होने पर उसमें दुरूहता आ गई । गुर्जरभाषामें भी सिद्धान्न के रहस्य को सरल रीतिसे प्रतिपादित करने वाले महामहोपाध्यायजी ने ग्रन्थों की रचना नव्यन्याय की रीति से की । जैन तर्क भाषा में भी नव्यन्याय का अंश आ गया है । इस आंशिक कठिनताको दूर करने के लिये भी इस टीका में सावधान होकर यत्न किया गया है। तर्क की उपयोगिता-- ___ आगमों का ज्ञान भी तर्क से परिपूर्ण है, उसको समझने के लिये भी तर्क को प्रक्रिया का ज्ञान अति आवश्यक है । आगम के अभ्यासी लोगों को भी तकभाषा को इस सरल टीका से सहायता मिल सकती है। गंभीर होनेके कारण तर्क ग्रन्थों के अभ्यास की इच्छा लोगों में कम पाई जातो