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भी दोनो पक्षों को महान् कष्टदेता है अपनी अथवा शत्रु की (18) प्रकृतियों की अन्योन्य माधना. उत्कृष्ट स्थिति को उपेक्षा करके, यदि किसी प्रकृति से प्रेरित होकर राजा शत्रु के प्रति अभियान करता है तो नीति शास्त्र के आचार्य उस पर ईष्या ही करते हैं 1 राजा को अपनी आक्रमाग योजना तथा तैयारी गुप्त रखना चाहिए61 । कौटिल्य अर्थशास्त्र में कहा है कि जो राजा अपने गुप्त विचारों या गुप्त मन्त्रणाघों को छिपाकर नहीं रख सकता है, वह उन्नतावस्था में पहुँचकर भी नीचे गिर जाता है । समुद्र में नींव के फट जाने पर जो दशा सवार की होती है, ठीक बहो दशा मन्त्र के फूट जाने पर राजा की होती है ।सर्वथा सन्नद्ध विजय का इच्छुक अपने तथा शत्रु के मित्रों को. मित्रों के मित्रों को, सेना के पीछे व्यूहभृत पाणिग्रह और आक्रन्दकों (आक्रन्दक = कोई राजा जो अपने मित्र राजा को अन्य राजा की सहायता करने से रोके) को एवं दोनों पाश्वों के बीच मलती सेना (आसारों) को लड़ाते हुए (समादि) उपायों के द्वारा, (प्रभु, मन्त्र और उत्साह) शक्ति के द्वारा और विद्या आदि की सिद्धि के द्वारा निश्चित ही शत्रु का नाश करते हैं ।
सद्यपि दूत अवध्य होता है, तथापि उसके कथन को मन में रखकर उसके स्वामी के विनाश का पूर्णचित्त से विचार करना हो चाहिए क्योंकि जहाँ काक और उल्लू खेलते हो तथा मब जगह शव और पोव व्याप्त हो,ठस बन में कौन व्यक्ति निडर होकर जायगा । अर्थात् भय के स्थान श्मसान मार्ग में जिस प्रकार सावधानी से जाले हैं, उसी प्रकार शत्रु के विषय में भी मावधान रहना चाहिए। अपने पुरुयार्थ पर भरोसा रखना चाहिए क्योंकि विजन्म अपने पुरुषार्थ के हो अधीन है । शत्रु दमन कौतिं का कारण होता है । शत्रु से होने वाली मुठभेड़ को आत्मीय जनों से होने वाली स्नेह भेंट से भी बढकर मानना चाहिए. क्योंकि यद्यपि महापुरुषों की मित्रमण्डली विशाल होती है, किन्तु उनकी अनुपम कीति का प्रसार तो श क दमन के कारण हा होता है। राजा को अपने राज्य को इंति भीति आदि विपत्तियों से बचाना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार की विपत्तियों के आने पर कोई राज्य समाप्त हो जाता है | राज्यों के साथ दुष्टों के समान व्यवहार न करें, अपने साम्राज्य में दूसरों के साम्राज्य को मिला दे किन्तु दूसरा दण् न दे. ऐसा करने पर रथादि के स्वामी शत्रु विजयी राजा को उपहार आदि प्रदान करते हैं ।
वादीभसिंह
वादीभसिंह बहुत ही प्रतिभाशाली आचार्य थे | आपके वाग्मित्व, कवित्व और गमकत्व की प्रशंसा जिन सैनाचार्य जैसे महाकवि ने की है । बादीभसिंह नाम जो उपाधि जान पड़ता है, मे उनकी तार्किकता सूचित होती है । उपचूडामणि, गचिन्तामणि और स्याद्वादसिद्धि ये तान रचनायें सम्प्रतिवादीभसिंह की उपलब्ध हैं । इनमें से प्रथम दो काम ग्रन्थ तथा अन्तिम स्यद्वादसिद्धि न्याय ग्रन्थ है । प्रमाणनौका और नवपदार्थविनिश्चय ये दो न्याय प्रन्थ भी वादीसिंह द्वारा रचित माने जाते हैं, सम्प्रति ये अनुपलब्ध * 1 स्यावादसिद्धि में जीवसिद्धि, फलभोकृत्वसिद्धि, युगपदनेकान्त सिद्धि, जगद्धि , भोक्सृत्वा भावसिद्धि, सर्वज्ञाभादमिद्धि, जगत्कर्तृत्वाभावसिद्धि, अर्हत्सर्वज्ञसिद्धि, अर्धापत्ति, प्रामाण्यसिद्धि, वेद पौरुषेयत्वमिद्धि, परत: प्राशयसिद्धि, अभाव प्रमाणदूषणसिद्धि, तर्कप्रामाण्यसिद्धि और गुणगुणी अभेदसिद्धि इन 14 अधिकारों द्वारा प्रतिपाद्य विभयों का निरूपण किया गया है।