Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri

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Page 164
________________ 154 -- ------- - गुप्त रहस्य प्रकाश की अवधि - महानुभाव दुसरे के प्रयोजन - अप्रयोजन को जानकर अपने हृदय की वात प्रकट करते हैं। गुप्तचरों का कर्तव्य - अब राजा 'दूर हो और शत्रु को सेना आ रही हो तो ऐसे अवसर पर जंगल में रहने वाले उसके गुप्तचर घुआ करना, आग जलाना. धूल उड़ाना अथवा पैसे का सींग फूकना आदि के बहाने उसे शत्रु की सेना के आने का निवेदन करें। गुप्तचरों का वेतन - कार्य सिद्ध हो जाने पर राजा द्वारा सन्तुष्ट होकर जो प्रचुर धन दिया जाता है, वहो गुप्तचरों का वेतन है, क्योंकि उस धनप्राप्ति के लोभ से वे अपने स्वामी को कार्य सिद्धि शीघ्र करते हैं। तीन शक्तियों - राजा लोग शक्तित्रय अर्थात प्रभु, मन्त्र और उत्साहशक्ति के द्वारा प्रजा के समस्त दुःखों को दूर करने का प्रयत्न करते थे । राजा का राजपना तीनों शक्तियों- प्रभु, मन्त्र और उत्साह से प्रकट होता है ये राजा को सारभूत सम्पत्तियाँ है, इससे वह समस्त पृथ्वी को कल्पलता के समान बना देता है, जिससे दिन पर दिन राज्य का सुख बढ़ता है। मन्त्रशक्ति - ज्ञानबल को मन्त्रशक्ति कहते हैं | बुद्धिशक्तिशारीरक शक्ति से भी श्रेष्ठ मानो जाती है । इसका उदाहरण यह है कि थोड़ी शारीरिक शक्ति रखने वाले खरगोश ने बुद्धिबल से सिंह को मार डाला। प्रभुशकि - कोश और दण्डबल को प्रभुशक्ति कहते हैं। इसके उदाहरण के रूप में शूद्रक और शक्ति कुमार के दृष्टान्त को लिया जा सकता है। प्रभुशांत की सम्पदा से पृथ्वी का पालन करके ही राजा का पृथ्वीपाल नाम सार्थक होता है। उत्साह शक्ति - पराक्रम और सैन्यशक्ति को उत्साह शक्ति कहते हैं। इसके उदाहरण श्री रामचन्द्र जी है। जो शत्रु की अपेक्षा उक्त तीनों प्रकार की शक्तियों से अधिक होता है, यह श्रेष्ठ है । जो शक्तिबय से शून्य है. वह जघन्य है, एवं जो उक्त तीनों शक्तियों में शत्रु के समान है, वह सम है। घाझुण्य सिद्धान्त - पद्मचरित के षष्ठ पर्व में राजा कुण्डलमझिडत को गुणात्मकः । (गुणों में युक्त) कहकर इसको विशेषता बतलाई गई है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में सन्धि, विग्रह यान, आमन, संश्रय और द्वैधीभाव ये षाद्गुण्य अर्थात् छ गुण कहे गए हैं। किन्तु पद्मचरित में सन्धि और विग्रह इन दो गुणों का ही उल्लेख मिलता है। बात व्याधि ऋषि का भी कहना है कि सन्धि और विग्रह ये दो ही मुख्य गुण है, क्योंकि इन्हीं दोनों गुणों से अन्य छह गुण स्वतः उत्पन्न हो जो है | आसन और संश्रय का सन्धि में, यान का विग्रह में और द्वैधीभाव का सन्धि तथा विग्रह दोनों में अन्तभाव हो जाता है । द्विसंधान महाकाव्य में शम और व्यायाम को योग (अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति) और क्षेम (प्राप्त वस्तु की रक्षा) का उद्गम कहा है। इन्हीं दोनों के षड्गुण निहित है। समझदार लोग शत्रुओं के बल की थाह लेकर ही इन छह गुणों में से किसी कर्तव्य का निश्चय करते हैं। सन्धि- कुछ भेंट आदि देकर अन्य राजा से समझौता करना सन्धि है । जिस प्रकार ग्वाला पशुओं को देखने की इच्छा से आए हुए राजा को धन, सम्पदा वगैरह देकर सन्तुष्ट करता है, उसो प्रकार यदि कोई बलवान् राजा राज्य के सम्मुख आए तो वृद्ध लोगों के साथ विचारकर उसे कुछ देकर उसके साथ संन्धि कर लेना चाहिए । युद्ध बहुत से लोगों के विनाश का कारण है, उसमें

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