Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri

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Page 169
________________ 150 राजा शक्तिशाली सीमाधिपति के लिए प्रयोजनवश धन देने का इच्छुक हो तो वह उसे विवाहादि उत्सव के अवसर पर सम्मानपूर्वक घर बुलाकर किसी भी बहाने प्रदान करे"। आश्रय यदि आक्रमण करने वाला राजा मध्यमकोटि का है, उसमें सार्वभौम राजा का गुण नहीं है तो उसकी शरण में न जाकर किसी उत्तम कोटि के ग़जा की महायता पाकर उसे जोतना अधिक सुगम हैं। । प्रभुशक्ति मन्त्रशक्ति और उत्माहशक्ति में बढ़े हुए इस प्रकार के राजा को वह धन जो कि मध्यम कोटि के शत्रु राजा को भेंट करना चाहते थे, भेंट करने पर आक्रमण के लिए तैयार किया जा सकता है | स्थान - यदि समृद्धव्यक्तियों से पर्याप्त कोश को महायता मिल सके तथा दूसरों के द्वारा अजेय शूर मनुष्य अपने पास हो तथा स्वयं राजा प्रभु, मन्त्र और उत्साह शनि मे मम्पन्न हो तो शत्रु राजा के प्रधान पुरुषों में फूट डलवाकर गुप्तचरों को सक्रिय कर दिया जाय और किसी समर्थ राजा द्वारा उस पर आक्रमण कराकर कुछ समय ठहरा जाय तो भी शत्रु को दुर्बल किया जा सकता हैं। भेद तथा दण्ड के प्रयोग का अवसर - भेद और दण्ड अभीष्ट नहीं है, क्योंकि इनका परिणाम मृत्यु और माश है। इससे हजारों आदमियों को क्लेश का भो सामना करना पड़ता है'', ऐसी स्थिति में उपर्युक्त चार उपाय हो इस संसार में पृथ्वी को रक्षा कर सकते हैं किन्तु यह भी ध्यान रखना चागि निशा. दा. :: मासान पनि अवसर निकल जाये जो भेट और दण्ड का ही प्रयोग करना चाहिए । मनुष्य लोक में धन, शरीर, बल, आयु, ऐश्वर्य चिरकात तक नहीं ठहरते हैं, किन्तु यदि कोई पुरुष सत्कर्म करके यश कमा सके तो वह अवश्य ही स्थायी होगा, अतः यश के लिए प्रयत्न करना चाहिए ! चारों उपायों का अवसर न होने पर भेद तथा दण्डनीति का प्रयोग राजा के वश और तेज को बढ़ाने के साथ आर्थिक विकास में ही माधक होना है । इस प्रकार का प्रस्ताव हृदयाकर्षक होता है और प्रस्ताव रखने पर राजा प्रसन्न होता है | दण्ड - अप्राप्त की प्राप्ति तथा प्राप्त के संरक्षण के लिए दण्ड का प्रयोग करना चाहिए। शत्रु पक्ष के विषय में कृत्याकृत्य का विचार कर जब साम, भेद, आदि व्याज्य हा जांच तो शत्रु दण्डनीय होता है । स्वर्ग उन्नत पद पर नियुक्त किन्तु अन्न निर्दय तथा पापमार्ग में प्रवृत्त अपने प्रिय लोगों को भी राजा उसी प्रकार फैंक देता है, जिम प्रकार लोग बढ़े हुए नखों को काटकर फेंक देते हैं । कठोर अश्वत्रा निर्दय मित्र को भी राजा दण्ड देने में नहीं चूकता हैं। इस प्रकार स.म से विपरीत दूरी स्थिति दण्ड की है। किसी कार्य के विषय में कहना और चीज है और कर्तव्य का ज्ञान और चीज है। हल चलाने की योग्यता रखने वाला चैन पवारों का काम नहीं दे सकता । कृत्य का निरूपण न करने वालो और खीर की तरह मनोहर बागों के प्रति कोई आकृष्ट नहीं होता । फल (निष्पत्ति) बोज (कारण) के पद (शब्द) पर स्थित हैं और बातें तो मब वृथा वाणो का आडम्बर है । पराई बढ़ती पर डाह करने वाले, व्यर्थ शत्रुता रखने वाले राजा के साथ साम का व्यवहार नहीं होता। उससे प्रियवचन कहे जायेगे तो वह और क्रूरता का व्यवहार करेगा। दुर्जन की प्रकृति ही ऐसी होती है कि वह अनुकुल नहीं किया जा सकता । योग्य पुरुष के प्रतिप्रयुक्त होने पर ही अच्छा उपाय सफल होता है, अन्यथा नहीं। वज़ से तोड़ने लायक पहाड़ पर राँको कुरा काम नहीं कर सकती । मदान्ध और पराया अपमान करने के लिये तैयार पुरुष के प्रति दण्ड का प्रयोग करना ही बुद्धिमानों की सलाह है । जो नया नहीं है, यह बैल महज ही वश में नहीं होता

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