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मरे के समान है । राख्न के समान तेम शून्य व्यक्ति को सभी नि:शंक होकर पराजित करने को तत्पर रहते हैं।
___13. न्याय परायणता - जब राजा न्यायपूर्वक पिता का पालन करता है तब ममी दिशायें प्रजा को अभिलाषित वस्तुयें देने वाली होती है । न्यायी राजा के प्रभाव से मेघों से यथासमय जलवृष्टि होती है और सभी प्रकार के उपद्रव शान्त होते हैं तथा समस्त लोकपाल राजो का अनुसरण करते हैं । उसी कारण विद्वान् राजा कोमध्यम लोकपाल (मध्यलोक कारक्षक) होने पर भी उत्तम लोकपाल (स्वर्गलोक का रक्षक) कहते हैं। ____14. सत्सङ्गति - दुष्टों की सत्सङ्गति अन्त में दःख देने वाली होती है।" । विद्याओं का अभ्यास न करने वाला मूर्ख मनुष्य भी विशिष्ट पुरुषों की सत्सङ्गति से उत्तम ज्ञान प्राप्त कर लेता
____15. दान देना - उस मेघ से क्या लाभ जो समय पर पानी नहीं बरसाता, इसी प्रकार यह क्या स्वामी है जो आश्रित व्यक्तियों की संकट के समय सहायता नहीं करता है जो धन या अभिलाषित वस्तु देकर दूसरों की मलाई करता है, वही उदारपुरुष लोगों का प्यारा होता है । संसार में वही दाता श्रेष्ठ है, जिसका मन पात्र (यान्त्रक) से प्रत्युपकार या धनादि लाभ की इच्छा से दूषित नहीं होता है 15 | राजा द्वारा विद्वान ब्राह्मणों को इतनी जमीन दान में दी जानी चाहिए. जिसमें गाय के रम्हाने का शब्द सुनाई न पड़े क्योंकि इतनी भूमि देने से दाता और गृहीता को सुख मिलता है । क्षेत्र, तालाब, कोट, गृह और मन्दिर का दान इन पाँच वस्तुओं के दान में आगेआगे की वस्तुओं का दान पूर्व के दान को बाधित कर देता है अर्थात् आगे-आगे का दान प्रशस्त होता है।
16. प्रत्युपकार - प्रत्युपकार करने वाले का उपकार बढ़ने वाली धरोहर के समान है । जो लोग प्रत्युपकार किए बिना हो परोपकार का उपभोग करते हैं वे जन्मान्तर में उपकारी दाताओं के ऋणी होते हैं ! उस गाय से क्या लाभ है जो कि दूध नहीं देती और न गर्भवती है ? इसी प्रकार उस मनुष्य के उपकार से क्या लाभ है जो कि वर्तमान या भविष्य में प्रत्युपकार नहीं कर सकता ?
17.समयानुसार कार्य करना - योग्य समय प्राप्त न होने तक अपकार करने वाले के प्रति साधु व्यवहार करना चाहिए | मनुष्य ईधन को आग में जलाने के उद्देश्य से अपने शिर पर धारण करते हैं। इसी प्रकार शत्रु को पराजित करने के लिए समय न आने तक उसके साथ ठीक व्यवहार करे । धौरे-धीरे वह उसे पराजित कर देगा । नदी का वेग अपने तट के वृक्षों के चरण (जड़ें) प्रक्षालन करता हुआ भी उन्हें जड़ से उखाड़ देता है । उक्त नीति से विपरीत अभिमानी पुरुष हस्तगत कार्य का भी विनाश कर देता है ।
18. जितेन्द्रियता - जिस मनुष्य की चित्तवृत्ति अन्य धन के समान परस्त्रियों के देखने पर भी लालसा रहित है, वह प्रत्यक्ष देवता है, मनुष्य नहीं |
19. गोपनीयता - अपनी बात को गोपनीय रखना राजा का बहुत बड़ा गुण है। छत्रचूड़ामणि के अनुसार जब सक इस कार्य की सिद्धि नहीं होती है, तब तक शत्रु की आराधना करें। इसी नीति