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98 सदभिप्राय से युक्त (तमानस:),सब कुछ जानने वाले विद्वान", निभीक उपदेश देने वाले, निज और पर की क्रियाओं को जानने वाले प्रेम से भरे, (राजा के परम अनुयायी आदि विशेषणों से भूषित किया गया हैं।
. अमात्यों का अधिकार क्षेत्र - अमात्यों के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत चार बातें आती हैं। (1) आय, (2) ध्यय, (3) स्वामिरक्षा, (4) तन्नपोषण ।
चतुरंग सेना को तन्त्र कहते हैं । अमात्य के दोष- अमात्य के निम्नलिखित दोष हैं। (1) भक्षण ( राजकीय धन खाना), (2) उपेक्षण (राजकीय सम्पत्ति नष्ट करना),
(3) प्रज्ञाहीनता (बुद्धि नष्ट होना),(4) उपरोध (प्रभावहीनता), (5) प्राप्ताप्रिवेश (करादि से प्राप्त धन जपा न करना), (6) द्रव्यविनिमय (राजकीय बहुमूल्य अल्पमूल्य में निकालना)
अमात्य होने के अयोग्य पुरुष - राजा को (१)तीक्ष्वा (अत्यन्त क्रोधी) (2) बलवान पक्ष वाला (३) मलिन (अशुचि) (4)व्यसनी (5) नाचकुलवाला (6) हठी (7 अधिक व्यय करने वाला (३) परदेशी और (9) कृपण व्यक्ति को अमान्य नहीं बनाना चाहिए।
___ क्रांची व्यक्ति दण्डित किए जाने पर या तो स्वंय मर जाता हैं या स्वामी को मार डालता हैं। प्रबलपक्ष वाला व्यक्ति मन्त्री पद पर नियुक्त होकर नर्दापुर के समान राजा रूपी वृक्ष का जड़ से उखाड़ देता है । जो आमदनी अल्प करता है और म्यय अधिक करता है वह राजकीय धन खा जाता है । थोड़ी आय घाला ( अमात्य) दरिद्रता के कारण देश व राजकुटुम्ब को पीड़ित करता है । विदेशी पुरुषों को धन के आय-व्यय का अधिकार और प्राणरक्षा करने का अधिकार नहीं देना चाहिए, क्योंकि वे राज्य में कुछ समय सक टहरकर अपने देश को प्रस्थान कर जाते हैं और समय पाकर राजद्रोह करने लगते हैं। अपने देशवासी पुरुषोद्वारा ग्रहण किया हुआ धन कुएं में गिरी हुई ( धनादि) वस्तु के समान धोड़े समय बाद प्राप्त हो सकता है । अत्यन्त कृपण व्यक्ति जब धन ग्रहण कर लेता है, तब उससे धन वापिस लेना पापाण से वत्कल (छाल) छोलमें के समान कठिन है''। यदि थालो अन्न आदि का भक्षण करने लगे तो भोजन करने वाले का भोजन कैसे मिल सकता है": ? इसी प्रकार अमात्य आदि धन को हड़पने लगे तो राज्य का कार्य नहीं चल सकता है । जब कोई मनुष्य किसी कन्या से विवाह करने का इच्छुक होकर किसी अन्य व्यक्ति को (सन्देश आदि के माथ) उसके पास भेजता है और वह जाने वाला व्यक्ति इस कन्या से स्वयं विवाह कर लेता है तो उस भेजने वाले व्यक्ति का तप करना ही श्रेयस्कर है। इसी प्रकार धनरक्षा के कार्य में नियुक्त अमात्य आदि स्वयं धन भक्षण करते हैं तो राजा को राज्य छोड़कर तप करना ही श्रेष्ठ है । कहने का तात्पर्य यह है कि जिस राजा के मन्त्री की बुद्धि धनग्रहण करने में आसक्त होती है, उस राजा का न तो कोई कार्य हो सिद्ध होता है, न उसके पास धन ही रह सकता है।
मन्त्रियों के दोष
(1) राधा की इच्छा के अनुसार अकार्य की कार्य के रूप में शिक्षा देना - जो मन्त्री राजा की इन्ठा मे उसकी आज्ञा के अनुसार चलने के उद्देश्य से अकार्य की कार्यरुप में शिक्षा देता है, वह राजा का शत्रु हैं ।