Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri

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Page 119
________________ 109 वहनकर उसका भक्षण करने वाला हाथी सुखी नहीं हो सकता, उसी प्रकार मंत्री आदि सहायकों के बिना स्वयं राजकीय कार्य को वहन करने वाला सुखी नहीं हो सकता है । क्षुद्रप्रकृति वाले कार्य में नियुक्त पुरुष सैन्धव जाति के घोड़ों के समान विकृत हो जाते हैं । जिस प्रकार बिलादों से दूध की रक्षा नहीं हो सकती है, उसी प्रकार अधिकारियों (नियोगियों) से (राज कोष की) रक्षा नहीं हो सकती । अतः राजा को सदा उनकी परीक्षा करते रहना चाहिए। फुटनोट 1. क्षत्रचूड़ामगि 10/11 2. क्षत्रचूड़ामणि 1/35 3. क्षत्रचूड़ामणि 1/45 4. गधचिन्तामणि प्रथमलम्भ पृ. 63 5. गधचिन्तामणि प्र. लम्भ प.37 - 38 6. गद्यचिन्तामणि पृ.68 7. आदि पुराण 4/161 १. वही 18/14 9. वही 3/251 10. आदिपुराण 4/189 11. उत्तरपुराण 62/201 12. यही 68/112 13. उत्तरपुराण 70/17 14. नीतिवाक्यामृत 10/2 15. वहीं 10/1 16. वही 10/3 17. वही 10/4 18. पाचरित 1136 19. वही 8/487 20. हरिवंशपुराण 2014 21. आदिपुराण 41191 22. वही 4/192 23. आदिपुराण 4/194 24. नीतिवाक्यामृत 10/67 25. वही 10/81 26, वही 10/82 27, यही 10/68-69 28. वही 10/70 29. वही 1079 30. नीतिवाक्यामृत 10777 31. नीतिवाक्यामृत 1017 32. वही 10/78 ३३. वसंगचरित 2/14 34. वहीं 11/56 35. वहीं 11/57 36. वही 12/16 37. वही 16/52 38. वही 20/26 9. वसंगचरित 23165 40. यही 12/20 41. वरांगचरित 12179 42. हरिवंशपुराण 2014 43. हरिवंशपुराण 11/80 44. वही 11/81 45. आदिपुराण 44/120 46. वही 29/168 47. उत्तरपुराण'557 48. कौटिलीय अर्थशास्त्रम् (अनुवाचस्वति गैरोला) प्रकरण 5 अध्याय १ पृ. 31-33 49. वही प्रकरण 4 अध्याय 8 पृ. 28 50. नोतिवाक्यामृत 10/104 51, वहो 10/5 52. वही 10/8 53. वहीं 10/17 54. वहीं 10/100 55. हरिवंशपुराण 50/11 55, गद्यचिन्तामणि दशम लम्म पृ. 382 57. उत्तरापुराण 70/17 58. नीतिवाक्यामृत 1848 59. पद्मचरित 8/12 60. वही 8/16 61. वही 8/487 62. वही 11165 63. वही 66/8

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