Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri

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Page 141
________________ 131 श्रेष्ठ सेना - सारहीन अधिक सेना की अपेक्षा सारयुक्त थोड़ी सेना उत्तम है। राजन-सारहीन सेना नष्ट हो जाती है तो शत्रु सारयुक्त सेना का भी नाश कर देता है । सैनिकों के प्रति व्यवहारजो युद्ध में सबसे अधिक पराक्रम दिखलाता था, उसे राजा वीरानणी" पद पर नियुक्त करता था। ऐसे व्यक्ति को वीरपट्ट बांधा जाता था जो अत्यधिक वीर सैनिक राजाओं के साथ युद्ध करते थे, उन्हें पैदल सेना का नायक (पत्तिनायक) और इस प्रकार के जो वीर घुड़सवार होते थे उन्हें घुडसवार सेना का नायक बना दिया जाता था | सजा को चाहिए कि जिस योद्धा में शूरवीरपत्रे की सम्भावना हो, उसके विषय में जानकारी प्राप्त कर उसका भी सम्मान करना चाहिए। जिसका पराक्रम देखा जा चुका है और जिसने अत्यन्त असाध्य कार्य सिद्ध कर दिया है, उसकी तो बात ही क्या है ? राजा सामन्तों को भी प्रसन्नता सूचक उपहार देकर सन्तुष्ट करे। राजा पद्मनाभ ने भीमराज को चमकदार कपड़े, सुभीम को मणिकङ्कण, महासेन को मुकुट, सेन को मोलियों की माला, चित्राङ्क को चूडामणि, परन्तप को स्वर्ण का यज्ञोपवीत..कण्ठराजा को रत्न को कण्ठी, सुकुमण्डल को कुण्डल तथा पीपरथ को अनर्थ (कोमती) मणि देकर प्रसन्न किया सथा अन्य राजाओं को भी यथायोग्य कवच, घोड़ा, रथ तथा हाथी देकर सन्तुष्ट किया। राजा को सैनिकों की देखरेख स्वयं करना चाहिए। जो राजा स्वयं अपनी सेना की देखभाल न कर दूसरों से कराता है, वह धन और तन्त्र (सेना) से रहित हो जाता है | राजा किसी अकेले व्यक्ति को सैन्याधिकारी न बनाए । ऐसा व्यक्ति शत्रु द्वारा फोड़े जाने के अपराधवश अपने स्वामी के प्रतिकूल होकर महान् अनर्थ करता है । सैनिकों क, ६, . सैनिकों को किस स्वामी को लोहकर न जाया युद्ध में स्वामी को छोड़कर जाने वाले सैनिक का ऐहलौकिक तथा पारलौकिक कल्याण नहीं हो है। पैदल, पालकी (दोला) पर सवार अथवा घुड़सवार ( व्यक्ति ) शत्रुको भूमि में प्रवेश न करें। युद्ध में अपने स्वामी से आगे आने वाले सैनिक को अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है | सेना के राजविरूद्ध होने के कारण - स्वयं सैनिकों की देखरेख न करना, उनके वेतन में से कुछ अंश हड़प जाना, वेतन विलम्ब से देना, विपत्ति में सहायता न करना एवं विशेष अवसरों पर सैनिकों का सम्मान न करना, इन सन्न कारणों से सेना राजविरूद्ध हो जाती है। युद्ध में जीत न होने का कारण - जिसके पास थोड़े समय ठहरने वाली सेना है. यह युद्ध में नहीं जीत सकता है। जय पराजय के सूचक शकुन - तत्कालीन जनता शकुनों में विश्वास करती थी। शुभाशुभ सपनों के द्वारा ही जय-पराजय की सूचना मिल जाती थी । चन्द्रप्रभचरित में सियारी का काई और शब्द करना, बायीं ओर गधे का मृदु शब्द करना, भारद्वाज पक्षी का परिक्रमा करना. मिरनी के वृक्ष पर कौआ बोलना, सहसा हाथियों के कपोलों से मद झरना, जय का सूचक तथा दार ओर सिपाहियों का बोलना, बार-बार छींक आना, साँप का राह काट जाना, कटिले वृक्ष पर बैटर कौए का कर्कश शब्द करना, घोड़ों की पूंछों में जलन होना. गधे का आर्त शब्द करना, प्रतिक हवा चलना, मन उदास होना व आकाश से रूधिर की वर्षा होना पराजय का सूचक मान्य गर पराजय के बाद की स्थिति - पराजित होने या शत्रु के तेज से अभिभूत होने पर ग़जारण बड़ी विपत्ति में पड़ जाते थे । कुछ अनुगामी बनकर उपायन (भेंट ले ज ब शादी

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