Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri

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Page 145
________________ 135 के लिए कटिबद्ध है, वे अपने अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा में हैं। जिन लोगों को राजसम्मान प्राप्त करने की इच्छा हो अथवा जो अपने राज्य का गौरव बढ़ाने के लिए सम्पत्ति का मोह छोड़ सकते हैं तथा जिन्हें अपने पौरुष का अभिमान है, वे शीघ्र महाराज की सेवा में उपस्थित हो | इस प्रकार की घोषणा राजा की आज्ञा से बड़े ठाठ-बाट से सारे नगर में की जाती थी। इसके साथ-साथ विशाल भेरी भी बजाई जाती थी तथा हाथी के मस्तक पर आरूढ़ व्यक्ति इस घोषणा को सब जगह घोषित करते थे | राजनीति का यह मूल मन्त्र है कि अपने से प्रबल शत्रु के साथ किसी भी प्रकार का वैर न करे । समान बल वाले के साथ भी शत्रुता करना दोषपूर्ण है। यदि अपने से हीन शत्रु पर देशकाल का विचार करके आक्रमण किया जाये तो सफलता प्राप्त होती है | चाणक्य ने भी कहा है- बलवान् राजा को चाहिए कि वह दुर्बल राजा से झगड़ा कर ले। अपने से बड़े या बराबर वाले के साथ झगड़ा न करे। बलवान् के साथ किया गया विग्रह वैसा ही होता है जैसे गज सैन्य से पदाति सैन्य का मुकाबला । कन्चा बर्तन कच्चे बर्तन के साथ टकराकर टूट जाता है, इसलिए बराबर वाले के साथ भी लड़ाई नहीं करना चाहिए । ऊपर हीन शत्रु पर आक्रमण करते समय देशकाल का विचार करने की सलाह दी गई है। कौटिल्य ने देश और काल की व्याख्या निम्नलिखित की हैं - देश देश पृथ्वी को कहते हैं। हिमालय से लेकर दक्षिण समुद्र पर्यन्त पूर्व पश्चिम दिशाओं में एक हजार योजन फैला हुआ और पूर्व पश्चिम की सीमाओं के बीच का भूभाग चक्रवर्ती क्षेत्र कहलाता है । उस चक्रवर्ती क्षेत्र में जंगल, आबादी, पहाड़ी इलाका, जल, स्थल, समतल और ऊबड़ खाबड़ आदि विशेष भाग होते हैं। इन भू-भागों को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाये जिससे अपनी बलवृद्धि में निरन्तर विकास होता रहे। जिस स्थान पर अपनी सेना की कवायद के लिए सुविधा तथा शत्रुसेना की कवायद के लिए असुविधा हो, वह उत्तम देश, जो इसके सर्वथा विपरीत हो वह अभ्रम देश और जो अपने तथा शत्रु के लिए एक समान सुविधा- असुविधा वाला हो वह मध्यम देश कहलाता है। - काल- काल के तीन विभाग हैं, सर्दी, गर्मी और वर्षा काल का यह प्रत्येक भाग रात, दिन, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर तथा युग आदि विशेषताओं में विभक्त है। समय के इन विशेष भागों में अपनी शक्ति को बढ़ाने योग्य कार्य करना चाहिए। जो ऋतु अपनी सेना के व्यायाम के लिए अनुकूल हो वह उत्तम ऋतु जो इसके विपरीत हो वह अधम ऋतु और जो सामान्य हो, वह मध्यम ऋतु कहलाती हैं 240 | यात्राकाल - विजिगीषु राजा भली भाँति तैयार होकर आवश्यकतानुसार सेना के तिहाई या थाई भाग को अपनी राजधानी, अपने पार्ष्णि और अपने सरहदी इलाकों की रक्षा के लिए नियुक्त कर यथेष्ट कोष तथा सेना को साथ लेकर शत्रु पर विजय करने के लिए अगहन मास में युद्ध के लिए प्रस्थान करें, क्योंकि इस समय शत्रु का इस समय पुराना अन्न संचय समाप्ति पर होता है, नई फसल के अन्न को संग्रह करने का वही समय होता है और वर्षा के बाद किलों की मरम्मत नहीं हुई रहती है। यही समय है, जबकि वर्षाऋतु से उत्पन्न फसल और आगे हेमन्तऋतु में पैदा होने वाली फसल दोनों को नष्ट किया जा सकता है। इसी प्रकार हेमन्त ऋतु की पैदावार को

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