Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri

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Page 159
________________ ! दशम अध्याय अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध दूत और उसका महत्त्व एक राजा दूसरे राजा के पास सन्देश भेजने का लिए साम, दाम आदि नीति के साथ दूत भेजता था | प्रत्युत्तर स्वरूप भी राजा दूसरे राजा के पास दूत भेजा करते थे। जैसे भरत के प्रति अपनी अनुकूलता प्रकट करने के लिए बाहुबली ने 'मैं आपके आधीन नहीं हूँ.' यह कहकर दूत भेज दिए थे। दूत के लिए 'वचोहर'' अथवा 'वचनहर" शब्द का प्रयोग होता था । कन्या के पिता अपनी कन्या के विवाह सम्बन्ध के लिए भी दूसरे राजा के पास द्रुत भेजते थे। दूत सावधानी से परिषद अथवा राजसभा में प्रविष्ट हो नमस्कार कर बैठता था, अनन्तर अवसर जानकर अपनी बात राजा के समक्ष रखता था । गद्यचिन्तामणि के द्वितीय लम्भ में बाण की दूत के रूप में सम्भावना कर उसे कान में बात कहने वाला तथा हृदय के भेदने में चतुर व्यंजित किया गया है'। दूत का पद बहुत महत्त्वपूर्ण और कठिन मित्राओं दान और सम्मान' की प्राप्ति होती थी और विरोधी राजाओं के यहाँ तिरस्कार मिलता था। दूसरे स्थान पर तो कभी-कभी उन्हें कहना पड़ता था कि हम लोग तो केवल स्वामी का समाचार ले जाने वाले दूत (चोहर) हैं, सदा स्वामी के अभिप्राव के अनुसार चलते हैं तथा गुण और दोषों का विचार करने में असमर्थ हैं । दूत प्रारम्भ में साम दाम आदि के वचन ही कहता था, किन्तु विरोधी राजा को अशान्त जानकर लौट आता था और सब समाचार अपने स्वामों से निवेदन करता था" | दूसरे राजा को अनुकूल करने के लिए चित्त का हरण करने वाला" तथा दूसरे के साथ विग्रह करने के लिए कलहप्रिय तथा दुर्वचन बोलने वाला दूत भेजा जाता था। दूत राजाओं के होते थे । मुख - दूत का लक्षण जो अधिकारी दूरदेशवर्ती राजकोय कार्य का साधक होने के कारण मन्त्री के समान होता है, उसे दूत कहते हैं ।" । - दूत के गुण दूत को शास्त्रज्ञान में निपुण, राजकर्त्तव्य में कुशल, लोकव्यवहार कर ज्ञाता, गुणों में स्नेह रखने वाला”, संकेत के अनुसार अभिप्राय को जानने वाला" तथा स्वामी के कार्य में अनुरक्त बुद्धि वाला होना चाहिए"। अपने पक्ष की सम्पत्ति और दूसरे पक्ष की विपत्ति का विचार करना, अपने मन्त्र को छिपाकर रखना, दूसरे मन्त्रियों के द्वारा नहीं फोड़ा जाना, मन्त्रभेट के भय से एकान्तस्थान में गुप्तरीति से शयन करना, युद्ध करने तथा युद्ध स्थल से निकलने के स्थानों को देखना ", विशेष स्थिति में युद्ध न होने का उद्योग करना" तथा कार्य को जानना दूत के विशेष गुण हैं। नीतिवाक्यामृत के अनुसार दूत के निम्नलिखित " गुण हैं 1. स्वामिभक्ति । 2. अव्यसनी होना । 4. पवित्रता । - 3. दक्षता । 5. विद्वत्ता । 6. उदारता । 7. सहिष्णुता 8. शत्रु के रहस्य का ज्ञाता होना । दूतों की योग्यतायें - दूत को निष्कपट, शिष्ट, कीर्ति और प्रताप का इच्छुक, उत्कृष्ट नीति

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