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123 षडङ्ग सेना - चक्रवर्ती की सेना के हाथी, घोड़े, रथ, पदाति, देव और विद्याधर ये छह अंग थे । पैदल सैनिकों की अपेक्षा रथसेना का गौरव अधिक होता था29 । संख्या में पैदल सेना अधिक होती थी, क्योंकि स्त्रियाँ भी युद्ध में चतुर होने के कारण योद्धाओं के समान आदरण करती थी।
उत्तरपुराण में षडङ्ग सेना का उल्लेख किया गया है । इस सब सेना की शोभा स्वापी से होती थी । स्वामी की सफलता असफलता की नीति पर बहुत कछ सेना की सफलता, असफलता निर्भर थी । सैनिक लोग कूट-युद्ध करने में भी निपुण होते थे । सैनिकों का यह विश्वास था कि युद्ध करने में एक तो सेवक का कर्तव्य पूरा हो जाता है, दूसरे यश की प्राप्ति होती है और तीसरे शूरवीरों की गति प्राप्त होती है । मन्त्रिगण अभ्युदय प्राप्त अनेक मित्रों से युक्त होने के कारण महान् और अजेय पराक्रम के धारक राजा से युद्ध करना श्रेष्ठ नहीं समझते थे, क्योंकि बलवान् के साथ युद्ध करने का कोई कारण नहीं है ।
घनब्जय के अनुसार जो राजा छह प्रकार के अन्तरंग श (काम, क्रोध, मान, लोभ, हर्ष तथा मद) को जीत लेता है, उसकी छह प्रकार की सेना उसे नहीं छोड़ती है" द्विसन्धान महाकाव्यके संस्कृत टीकाकार नेमिचन्द्र ने ग्रह प्रकार की सेना के अन्तर्गत मौल, भृतक, श्रेण्य, अरण्य, दुगं तथा मित्र सेना को माना है । अपने कथन की पुष्टि में उन्होंने एक श्लोक भी इसी आशय का उद्धृतकिया है । कोटिल्य ने दुर्गबल को न गिनाकर उसके स्थान पर अमित्रबल गिनाकर छह संख्या की पूर्ति की है. साथ ही एक सातवें प्रकार की सेना, जिसे उन्होंने औत्साहिक बल कहा है, का अलग से कथन किया है |
1.मौलबल - मूल स्थान अर्थात् राजधानी की रक्षा के लिए जितनी सेना की अपेक्षा हो उसके अतिरिक्त सेना को युद्ध में ले जाना चाहिए अथवा मौलबल के विद्रोह कर देने की सम्भावना हो तो उसको युद्ध आदि कार्यों में साथ ले जाना चाहिए या मुकाबले में आये हुए शत्रु पर मौल बल के अनुराग की सम्भावना जान पड़े तो उसका साथ ले जाना चाहिये अथवा शत्रु किसी शक्तिशाली सैन्य को लेकर युद्ध करने के लिए आया है तब भी मौलबल को साथ ले जाना चाहिए या दूरदेश, दोर्घकालीन युद्ध क्षय-व्यय की अवस्था में भी मौलबल को साथ रखना चाहिए। स्वामिभक्त शत्रु के दूत मेरी सेना में भेद डालने का यत्न करेंगे, ऐसी सम्भावना होने पर तथा दूसरी सेनाओं पर पूरा विश्वास नहोने की स्थिति में भी मौलबल को युद्ध करना चाहिए, क्योकि मौलबल अत्यन्त स्वामिभक्त होने के कारण फोड़ा नहीं जा सकता है। अन्य सेनाओं के प्रधान पुरुषों का नाश हो जाने पर यदि विजिगीषु की सेना के क्षेत्र छोड़कर भाग जाने का भय हो तो मौलबल को युद्धक्षेत्र में साथ ले जाना चाहिए ।
2. भूतक बल- यदि विजिगीषु राजा यह समझे कि मौसबल को अपेक्षा मेरा भृतकबल अधिक है अथवा शत्रु का मौलबल थोड़ा तथा अविश्वासी है अथवा शत्रु का भृतकबल कमजोर या न होने के बराबर है अथवा इस समय शत्रु के साथ तृष्णी युद्ध करना पड़ेगा, अथवा थोड़े ही बम से कार्य सम्पन्न हो जायगा अथवा युद्ध का गन्तव्य देश दुर नहीं है, समय भी थोड़ा ही लगेगा
और अधिक क्षय, व्यय की सम्भावना नहीं है, अध्यवा शन्नु के गुप्तचर मेरी सेना में बहुत कम प्रवेश कर सकेंगे और वे भी भेद न डाल सकेंगे, यदि उन्होंने भेद डाल दिया तो अपनी विश्वस्त सेना को काबू में न डाल सकूँगा अथवा शत्रु के थोड़े ही कार्यों की क्षति करना है तो ऐसी स्थिति में एवं ऐसे अवसरों पर भृतकवल को साथ लेकर उसको युद्ध में आना चाहिए ।