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भी व्यक्ति किसी भी स्थिति में मन्त्रणा स्थल न जावे । यदि गुप्तमन्त्रणा के भेद को कोई फोड़ दे तो तत्काल ही उसको मरवा दे । सोमदेव के अनुसार जो स्थान चारों तरफ से खुला हो तथा चारों तरफ से प्रतिध्वनि गुंजती हो ऐसे (पर्वत गुफा आदि स्थानो में) मन्त्रणा नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति दिन या रात्रि में मन्त्रणा करने के योग्य स्थान की प्रतीक्षा किए बिना ही मन्त्रणा करता है। उसका गुप्त मंत्र प्रकाशित हो जाता है।
मन्त्रणा के अयोग्य व्यक्ति - राजा ने जिनके बन्धु आदि कुटुम्बियों का अपकार किया है, उसे उन विरोधियों के साथ मन्त्र (गुप्त सलाह ) नहीं करना चाहिए | कोई भी व्यक्ति राजा को आज्ञा के बिना मन्त्रणा के समय बिना बुलाया हुआ उस स्थान पर न तहरे । सुना जाता है कि तोता, मैना ने तथा दूसरे पशुओं ने राजा की गुप्त मन्त्रणा को प्रकाशित कर दिया था।
मंत्रभेद (गुप्त मन्त्रणा के प्रकाशन) से हानि - गुप्त मंत्रणा के प्रकाशन (मन्त्रभेद) से उत्पन्न संकट को कठिनाई से नष्ट किया जा सकता है |
__ मन्त्रभेद के कारण - इंगित (मुखचेष्टा) 2-आकार (शरीर की सौप्य या रौढ़ आकृति) 3-मद 4-प्रमाद 5-निद्रा तथा प्रतिध्वनि' से मन में रहने वाले गुप्त अभिप्राय को चतुर लोग जान लेते हैं।
मन्त्रणा की सुरक्षा और उसका प्रयोग - जब तक कार्य सिद्ध न हो जाय तब तक अपने मन्त्र ( गुप्त बातचीत) की रक्षा करनी चाहिए" । मन्त्रियों को मन्त्रणा के समय परस्पर में कलह करके बाद विवाद और स्वछन्द बातचीत नहीं करना चाहिए। विचार निश्चित हो जाने पर शीघ्र ही कार्यरुप में परिणत करने का यल करना चाहिए, इसमें आलस्य नहीं करन चाहिए । कर्तव्यपालन (अनुष्ठान) के बिना केवल निश्चित विचार से (आलसी: विकयाों को तरह कोई लाभ नहीं होता है । जिस प्रकार कि औषधि के ज्ञानमात्र से रोग की शान्ति नहीं होती।
पंञ्चांग मन्त्र - धनञ्जय ने पंचाग मन्त्र का निर्देश किया है । ये पाँच अंग है(1) कार्य आरम्म करने का उपाय । (2) पुरुष तथा दव्य सम्पत्ति । (3) देशकाल का विभाग ।
(4) विनप्रतीकार । (5) कार्यसिद्धि ।
(1) कार्य आरम्प करने का उपाय - अपने राष्ट्र को शत्रुओं से सुरक्षित रखने के लिये उसमें खाई, परकोटा और दुर्ग आदि के निर्माण करने के सामनों पर विचार करना और दूसरे देश में शत्रुभूत राजा के यहाँ सन्यि व विग्रह आदि के उद्देश्य से गुप्तचर व दूत भेजना आदि कार्यों के साधन पर विचार करना मन्त्र का प्रथम अंग हैं ।
(2) पुरुष तथा द्रव्य सम्पत्ति - यह घुरुष अमुक कार्य करने में निपुण है, यह जानकर उसे उस कार्य में नियुक्त करना तथा द्रष्यसम्पत्ति इतने धन से अमुक कार्य सिदध होगा। यह क्रमश: पुरुषसम्पत् तथा द्रव्यसम्पत् नाम का दूसरा मन्त्र का अंग है।
(3) देश और काल - अमुक कार्य करने में अमुक देश का अमुक काल अनुकूल एवं अमुक देश और काल प्रतिकूल है, इसका विचार करना मन्त्र का तीसरा अंग है।।
(4) विघ्नप्रतीकार - आयी हुई विपत्ति के विनाश का उपाय चिन्तन करना । जैसे अपने