________________
96
के दशम लम्भ में राजा द्वारा महामात्र (महामन्त्री) की नियुक्ति का उल्लेख हुआ है। उत्तरपुराण में इसी का समर्थन करते हुए कहा गया है- राजा मन्त्रियों की नियुक्ति करता और बढ़ाता है। मन्त्री अपने उपकारों से राजा को बढ़ाते हैं ।
नोतिवाक्यामत के अनुसार (मन्त्री,सेनाध्यक्ष आदि) करण की नियुक्ति अनेक पुरुषों सहित तथा अस्थायी होना चाहिए । अस्थायी करते समय स्वदेश व परदेश का विचार नहीं करना चाहिए।
मन्त्रियों के अर्थ - मन्त्रिगण राजा के प्रत्येक कार्य में सलाह दिया करते थे । राजा मय की पुत्री मन्दोदरी जब तारुण्यवती ही गई तब उसके योग्य वर की खोज के लिए राजा ने मन्त्रियों से सल्लाह की" | मन्त्र करने में निपुण मारीच आदि सभी प्रमुख मन्त्रियों ने बड़े हर्ष के साथ राजा को उचित समानी ! राजा महेन्द्रकी की संभाजन मियाह योग्य उस सपय महेन्द्र ने भी मन्त्रिजनों से योग्य पर बतलाने के लिए कहा और विचारविमर्श कर योग्य वर की तलाश की। यम नामक लोकपाल के द्वारा रावण की प्रशंसा किए जाने पर अब इन्द्र (इन्द्र नामक रामा) युद्ध के लिए उद्यत हुआ, तब नीति की यर्थाथता को जानने वाले मन्त्रियों ने उसे रोका" । राजा जन विभिन्न प्रकार के वाद विवादों का निर्णय करता था, उस समय मन्त्रिगण भी वादस्थल में उपस्थित रहते थे । मृगांक आदि मन्त्रियों ने रावण को समझाया कि सीता को छोड़कर राम के साथ सन्धि करो।नौतियुक्त बात कहने के कारण रावण उसकी बात टाल नहीं सका और उसने सन्धि के लिए दूत भेजा, परन्तु दृष्टि के संकेत से रावण ने अपना दुरभिप्राय समझा दिया। इसके बाद पुन: मन्दोदरी ने रावण को समझाने के लिए मन्त्रियों को प्रेरित किया तब मन्द्रियों ने स्पष्ट कह दिया कि दशासन का शासन यमराज के शासन के समान है । वे अत्यन्त मानी और अपने आपको ही प्रधान मानने वाले हैं । मन्त्रियों के इस कथन से ही उनकी विज्ञता सूचित होती है।
मन्त्रिगण हृदय से राजा के प्रति प्रेम घारण करने वाले होते थे। जब हनुमान दीक्षा लेने का विचार व्यक्त करते हैं तो मन्त्रि लोग शोक से व्याकुल हो जाते हैं और कहते हैं- देव । आप हम लोगों को अनाथ न करें । राजा को अनुपस्थिति में या अन्य किसी आपत्ति में मन्त्रि लोम अन्तः पुर को यत्नपूर्वक रक्षा करते है। जब साहसगति विद्याधर ने सुग्रीव का वेष धारणकर लोगों को वास्तविक सुग्रीव के विषय में भ्रम में डाल दिया। तब मन्त्रियों ने सलाह की कि निर्मल गोत्र पाकर हो शीलादि आभूषण से विभूषित हुआ जाता है इसलिए इस निर्मल अन्तःपुर की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए।
हितकारी कार्य में प्रवृत्त करना और अहितकारी कार्य का निषेध करना मन्त्री के ये दो कार्य है । मन्त्री को चाहिए कि वह परिपाक में पध्यरूप वचन कहे। क्योंकि जो बुद्धिमान होते हैं ये अकार्य को कभी नहीं बतलाते हैं । मन्त्री नीति का परित्याग न करने वाले, विपाक में रमणीय विद्वानों को हितकर कानों को रसायन के समान लगने वाले वचन कहकर विराम ले ले।
बिना जाने या बिना प्राप्त किए हुए शत्रु सैन्य वगैरह का जानना या प्राप्त करना, जाने हुए कार्य का निश्चय करना, निश्चित कार्य को दृढ़ करना, किसी कार्य में सन्देह होने पर निवारण करना, एकोदेश प्राप्त हुए भूमि आदि पदार्थों का प्राप्त करना अथवा एकदेश जाने हुए कार्य के शेषमाग को जान लेना ये सन कार्य राजा को मन्त्री आदि की सलाह से सिद्ध करना चाहिए।