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चाहिए। परस्पर में ईर्ष्या रखने वाले बहुत से मन्त्री राजा के समक्ष अपनी बुद्धि का उत्कर्ष प्रकट करते हैं (अपना अपना मत पुष्ट करते हैं) बहुत से अन्धों का समूह रुप को नहीं जान सकता, इसी प्रकार बहुत से गुणहीन मन्त्री यथार्थ निश्चय नहीं कर सकते।
मन्त्रियों की योग्यता - मन्त्री को अर्थतत्वका जानने वाला हितकर और प्रिय सम्मति देने वाला, अपने राज्य को सब प्रकार से सम्पन्न बनाने में तत्पर*, इष्ट कार्य को करने वाला पक्षपात की भावना से रहित ,स्वामी के प्रति सदैव भक्ति रखने वाला. सदबुद्धि से युक्त". युक्ति संगतवचन बोलने वाला. सब दृष्ट्रियों से हितकर संक्षिप्त तथा सारपूर्ण वचन बोलने वाला तथा हिताहित के विचार में दक्ष होना चाहिए।जो बुद्धिमान नहीं होते हैं, उनके द्वारा सोची गई योजनायें निश्चित रुप से विनाश को प्राप्त करती हैं। वर्तमान तथा भविष्य में उपस्थित होने वाले कार्य को प्राप्त करता है स्वंय समझे बिना हा केवल दूसरों की बुद्धि और तकणा से जो व्यक्ति समझने का प्रयत्न करते हैं, उन मूढ़ो को अपने कार्य में सफलता नहीं मिलती है। बुरी सपति मानने के कारण वे उन सम्मति देने वालों के साथ नष्ट हो जाते हैं" । मन्त्रियों के विशेषण में एक विशेषण 'मन्त्रमार्गविद्' आता है' अर्थात् मन्त्री को मन्त्रमार्ग का ज्ञाता होना चाहिए । भरत और बाहुबली राजा समान बलशाली थे । उनका यदि युद्ध होता तो जनपद का क्षय होता, अत: हरिवंशपुराण के 11वें सर्ग में कहा गया है कि दोनों ओर के मन्त्रियों ने परम्पर सलाह कर कहा कि देशवासियों का क्षयन हो, इसलिए दोनों राजाओं में धर्मयुद्ध होना चाहिए । भरत और बाहुबली दोनों ने मन्त्रियों की बात मान ली | आदिपुराण अच्छे मन्त्री को सरल, दूरदर्शी, शीघ्र ही कार्य करने वाला, शास्त्र माग के अनुसार चलने वाला , छल रहिस, स्वच्छ हृदय को प्रकट करने वाला, अन्तरंग अनुराग को प्रकट करने वाला, सर्वस्वसमर्पणकारी, अपना गुप्त घन राजा के पास रखने वाला और उदार होना चाहिए।
मन्त्रियों की योग्यता की परीक्षा - मन्त्रियों को परीक्षा चार प्रकार की उपधाओं (गुप्त उपायों) तथा जाति आदि गुणों से करना चाहिए" । चार उपघायें ये हैं, 1- धर्मोपचा।
2- अर्थोपधा। 3- कामोपचा।
4- भयोपधा । कौटिलीय अर्थशास्त्र में इनका विस्तृत वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है
1.थोपधा - धर्मोपधा से राजा पुरोहित को किसी नीच जाति के यहां यज्ञ करने तथा पढ़ाने के लिए नियुक्त करे। जब पुरोहित इस कार्य के लिए निषेध करे तो राजा उसको उसके पद में ज्युत कर दे । वह पदच्युत पुरोहित गुप्चतर स्त्री पुरुष पुरुषों के माध्यम से शपथपूर्वक प्रत्येक अमात्य को राजा से भिन्न कराए । वह कहे - यह राजा बड़ा अधार्मिक है । हमें चाहिए कि उसके स्थान पर उसके ही वंशज किसी श्रेष्ठ पुरुष को, किसी धार्मिक व्यक्ति को, समीर के किसी सामन्त को, किसी जंगल के स्वामी को या जिसको भी हम एकमत होकर निश्चित कर लें, उसको नियुक्त करें । मेरे इस प्रस्ताव को सबने स्वीकार कर लिया है बताओ तुम्हारी क्या राय है ? पुरोहित की यह बात सुनकर आमात्य यदि उसे स्वीकार न करे तो उसे पवित्र हृदय वाला समझना चाहिए । इस प्रकार गुप्त धार्मिक उपायों द्वारा अमात्य के हदय की पवित्रता की परीक्षा को धर्मोपधा कहते
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