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षष्टअध्याय
मन्त्रिपरिषद और अन्य अधिकारी मन्त्रिपरिषद का महल-मन्त्रिवित् राजा को पन्त्रशाला में मन्त्रियों के साथ विचार करना चाहिए। विचार किए बिना किसी कार्य का निश्चय नहीं करना चाहिए तथा (किसी कार्य के विषय में) निश्चय हो माने पर मन्नणा नहीं काना चादि । पन्त्रिाये के नननों का उल्लघंन करना अभाग्य को निमन्त्रण देना है। समय आ पड़ने पर अपने स्वामी के प्रति गाढ़ भक्ति रखने वाला सचिव (मन्त्री) अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करता है और अपने प्राणों का नाश करने वाले वचन बोलता है । गद्यचिन्तामणि के प्रथमलम्भ से पता चलता है कि राजा के प्रतिनिष्ठा रखने वाले कितने ही मन्त्रियों को मार डाला गया कितने ही को काले लोहे की बेड़ियों से बदबरण कर चोर के समान कारागृह में डाल दिया गया । मन्त्री के गणों से प्रभावित होकर कभी कभी राजा उन पर शासन का भय रखकर अपने दिन सुखपूर्वक बिताते थे इसका परिणाम अच्छा और कभी कभी बुरा भी होता था। सत्यंघर राजा द्वारा काष्ठांगार के ऊपर शासन का भार रखना उनकी मृत्यु और राज्यापहरण रुप अनिष्ट का कारण बना । गद्यचिन्तामणि के प्रथमलम्म में काष्ठागार के गुणों का वर्णन करते हुए कहा गया है - राजा सत्यंधर काष्ठांगार नामक उस मन्त्री पर राज्य का भार रखने को तैयार हो गया, जिसने अपने स्वभाव से इन्द्र के पुरोहित बृहस्पति को तिरस्कृत कर दिया था, जो राजनीति के मार्ग को अच्छी तरह जानता था, सफलता को प्राप्त हुए साप आदि उपायों के द्वारा जिसका यश बढ़ रहा था, पराक्रमरूप सिंह के निवास करने के लिए जो चलता, फिरता वर्णन था, गाम्भोर्य रुपगुणों से जिसने समुद्र को निन्दित कर दिया था, अपनी स्थिरता से जिसने कुलाचल की खिल्ली उमाई थी, जिसका पन पत्र के समान कठोर था, जो संकट के समय भी खेदखिन नहीं होता था, जो समस्त शत्रुदल पर आक्रमण करने को तैयार बैठा था एवं अनुस्साह को जिसने दूर भगा दिया था।
उपर्युक्त विवरण से मन्त्रियों के निम्नलिखित सामान्य गुणों पर प्रकाश पड़ता है1- तीक्ष्ण बुद्धि होना 2- राजनीति के मार्ग को अच्छी तरह समझना । ३- साम आदि उपाय से सफलता प्राप्त कर यश की वृद्धि करना । 4- गाम्भीर्य और स्थैर्य गुणों से युक्त होना 1 5- संकट के समय न घबराना । 6- शत्रु पर आक्रमण करने के लिए तैयार होना । 7- उत्साही होना।
एक अन्य स्थान पर सुयोग्य मन्त्रियों के राजनीति में कुशलता, सरल बुद्धि, कुल क्रमागत मोटे कार्यों से त्रिमुखता एवं वृद्धावस्था में विद्यमान होना रुप गुणों का कथन हुआ है।
आदिपुराण के अनुसार जिस प्रकार मन्त्रशक्ति के प्रभाव से बड़े बड़े सर्प सामर्थ्यहीन होकर विकाररहित हो जाते हैं, उसी प्रकार मन्त्रशक्ति (मन्त्रापाशक्ति) के प्रभाव से बड़े बड़े शत्रु सामथ्यहीन होकर विकाररहित हो जाते हैं।