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2. अर्थोपा अर्थोपधा से राजा किसी निन्दनीय या अपूज्य व्यक्ति का सत्कार करने के लिए सेनापति को आदेश दे। राजा की इस बात से जब सेनापति रुष्ट हो जाय तो राजा उसकी भी पदच्युत कर दे। वह पदच्युत अपमानित सेनापति गुप्त भेदियों द्वारा अमात्य को धन का प्रलोभन देकर उन्हें पूर्वीक्त विधि से राजा के विनाश के लिए उकसाए। वह कहे मेरी इम युक्ति को सभी
स्वीकार कर लिया है। बताओ, तुम्हारी क्या सम्पति है ? सेनापति को यह बात सुनकर अमात्य यदि इसका विरोध करे तो समझ लेना चाहिए कि वह पवित्र हृदय वाला है। इस प्रकार गुप्त आर्थिक उपायों द्वारा अमात्य के हृदय की पवित्रता की परीक्षा को अर्थोपा कहते हैं ।
3. कामोपधा- कामोपधा से राजा किसी सन्यासिनी का वेष धारण करने वाली विशेष गुप्तन्नर स्त्री को अन्तःपुर में ले जाकर उसका अच्छा स्वागत सत्कार करे और फिर वह एक एक अमात्य के निकट जाकर कहे कि महामात्य महारानी जी पर आसक्त है। आपके समागम के लिए उन्होंने पूरी व्यवस्था कर दी है। इससे आपको यथेष्ट धन भी प्राप्त होगा। अमात्य यदि उसका विरोध करे तो उसे पवित्रचित्त समझना चाहिए। इस प्रकार गुप्त काम सम्बन्धी उपायों द्वारा अमात्य के हृदय में पवित्रता की परीक्षा को कामोपघा कहते हैं।
4. भयोपधा - नौकाविहार के लिए एक अमात्य दूसरे अमात्य को बुलाए। इस प्रस्ताव पर राजा उत्तेजित होकर उन सबको दण्डित कर दे तदन्तर राजा द्वारा पहले अपकृत हुआ कपटवेषधारी छात्र (छात्र के रूप में गुप्तचर) उस तिरस्कृत एवं दण्डित अमात्य के निकट जाकर उससे कहे यह राजा बहुत ही बुरा है । इसका वध करके हम किसी दूसरे राजा को उसके स्थान पर नियुक्त करें। सभी अमात्यों को यह स्वीकृत हैं कहिए, आपकी क्या राब है ? अमात्य यदि उसका विरोध करे तो उसको शुचिचित्त समझना चाहिए। इस प्रकार गुप्तमय सम्बन्धी उपात्रों द्वारा अमात्य की शुचिता की परीक्षा को भयोपधा कहते है* ।
जाति आदि गुणों से तात्पर्य मन्त्री का स्वदेशोत्पन्ना, सत्कुलीन, अवगुण शून्य, निपुणमवार एवं ललितकलाओं का ज्ञाता, अर्थशास्त्र का विद्वान, बुद्धिमान, स्मरणशक्ति सम्पन्न, चतुर, वाकपटु प्रगल्भ ( दबंग) प्रतिवाद तथा प्रतीकार करने में समर्थ, उत्साही, प्रभावशाली, सहिष्णु, पवित्र, मित्रता के योग्य, दृढ़, स्वामिभक्त, सुशील, समर्थ, स्वस्थ, धैर्यवान, निरभिमानी, स्थिरप्रकृतिः प्रियदर्शी और द्वेषवृत्तिरहित होना है" । मन्त्री पद की प्राप्ति, राजा की प्रसन्नता व शस्त्रों से जीविका करना, इनमें से प्राप्त हुई एक एक वस्तु भी मनुष्य को उन्मत्त बना देती है। इन तीनों का समुदाय उपस्थित हो तो कहना ही क्या" ? अतः राजा को योग्यता देखकर मन्त्रियों को नियुक्ति करना चाहिए। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण में से एक वर्ष का स्वदेशवासी, सदाचारी, कुलीन, विशुद्ध. निर्व्यसनी, अव्यवाभिचारी, समस्त व्यवहारों का ज्ञाता, युद्धविद्धा में प्रवीण तथा छलकपट से रहित व्यक्ति को मन्त्री बनाना चाहिए"। नीच कुल वाला मन्त्री राजा से द्रोह करके भी मोह के कारण किसी से लज्जा नहीं करता है । कुलीन पुरुषों में विश्वासघात आदि का होना अमृत का विय होने के समान है। जिस प्रकार नेत्र की सूक्ष्मदृष्टि उसके महत्व का कारण होती है, उसी प्रकार राजमन्त्री की भी यथार्थ दृष्टि उसको राजा द्वारा गौरव प्राप्त कराने में सफल होती है ।
मन्त्रियों की नियुक्ति गुप्तचर रूपी नेत्रों से युक्त राजा के मन्त्री ही निर्मल चक्षु है" । अतः योग्य मन्त्रियों की नियुक्ति होना चाहिए। मन्त्रियों की नियुक्ति राजा करता था । गद्यचिन्तामणि