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88 कार्यों में तत्पर है, कौस्तुभमणि के साथ उत्पन्न होकर पी पुरुषोत्तम-नारायण से द्वेश करने वाली है। यह पाप की द्धि बढ़ाने में शिकार है, परवशता उत्पन्न करने में वेश्या है, ठगने में जुआ के समान है और तृष्णा बढ़ाने में मृगमरीचिका है। यह लक्ष्मी रात्रि के समान है, क्योंकि जिस प्रकार रात्रि तम-अन्धकार सेसहित और दूसरे प्रकाश को नहीं सहने वाले स्वभाव से युक्त है, उसी प्रकार यह लक्ष्मी भी तमोगुण सहित और दूसरे के वैभव को नहीं सहने वाले स्वभाव से युक्त है अथवा यह लक्ष्मी कुलटा स्त्री के समान है, क्योंकि जिस प्रकार व्याभिचारिणी स्त्री पुरुष से द्वेष रखती हुई दूसरे पुरुष जी योग में तत्पर रहती की एका भागी पी एमजाले साथ द्वेष रखती हुई दूसरे पुरुष की खोज में रहती है । अथवा लक्ष्मी पानी के बबूला के समान है, क्योंकि जिस प्रकार पानी का बबूला जल के ऊपर प्रभाव रखता है, उसी प्रकार यह लक्ष्मी भी जड़प्रभवामूर्खअनों पर प्रभाव रखती है। जिस प्रकार बबूला क्षणमर के लिए अपनी उन्नति दिखलाता है उसी प्रकार यह लक्ष्मी भी क्षणभर के लिए अपनी उन्नति दिखलाती है । अथवा यह लक्ष्मी किपाकफल के समान है, क्योंकि जिस प्रकार किंपाकफल भोगों की इच्छा को प्रवृत्त करता है, उसी प्रकार यह लक्ष्मी भी भोगों की इच्छा को करती है- बढ़ाती है। किपांकफल जिस प्रकार कटुकफला - मृत्युरूप फल से युक्त है, उसी प्रकार यह लक्ष्मी पो दुःखदाई परिणामसहित है।
इस प्रकार परगतिविरोधिनी - दूसरे की उन्नति से विरोध रखने वाली, फलदायक व्यय से दूर रहने वाली, पृथ्वी आदि भृतचतुष्टय से निर्मित शरीरमात्र पोषण में तत्पर रहने वाली और श्रेष्ठ चरित्र को नष्ट करने वाली, चावांकमत के सदृश राजलक्ष्मो से परिगृहीत राजपुत्र उसीक्षण नैयायिकों के द्वास निर्दिष्ट मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त हुए के समान पूर्ववती- गुणसमूह को भी नए कर केवल जड़स्वरूपता को अपने आधीन करते हैं और सांख्यदर्शन में कल्पित पुरुष के समान सदा अहंकार संगत प्रकृति से युक्त होते हैं तथा प्रकृति के विकार को सूचित करने वाले स्वभाव के विकार को प्रकट करने वाले वचन बोलते हैं।
राजाओं का जो स्वरूप है, उसके वर्णन करने में इन्द्र को भी असंख्य मुखों का धारक होना चाहिए । वे सज्जनों से सेवित नहीं होते हैं । वे धर्म शब्द को न सुनने वाले, मन्त्रियों की बात न मानने वाले, तेजस्वी मनुष्यों को सहन न करने वाले, शास्त्रों से रहित, काम में इच्छा रखने वाले, निर्दय अभिप्राय से युक्त, अदूरदर्शी, भविष्य के विचार से रहित, नाम का उन्मूलन करने वाले, अपने कुल को नष्ट करने वाले, भयंकर सजा देने वाले प्रष्ट, विचारशक्ति से रहित तथा योग्य निर्णय से विमुख रहते हैं।
इस प्रकार जो अत्यन्त क्षुद्र है, अनेक क्षुद्रतर मनुष्यों के समूह से भोगकर छोड़े हुए पृथ्वी के जरा से टुकड़े की प्राप्ति से सम्बन्ध रखने वाले पट्टबन्ध से जो अन्ये हो रहे हैं, जो विषयरूपी अन्धकार में संचार करने वाले हैं, जो गलत रूप स्वभाव से युक्त शरीर को, विनश्वर ऐश्वर्य को, दावानल से युक्त वन के समान यौवन को, विचार करने पर नष्ट होने वाले पराक्रम को, इन्द्रधनुष के समान सौन्दर्य को और तण के अग्रभाग पर स्थित पानी की बूंद की सदृशता को प्रख्यापित करने वाले अस्थायी सुख को स्थायी समझ रहे हैं और जो सम्पन्नता के कारण उत्पन मूढ़ता से स्वयं ही मानों पतन कर रहे हैं ऐसे उन क्षुद्र राजाओं को लाठियों से घायल करते हुए के समान होने से कपटपूर्णवृत्ति को धारण करते हुए सजन की तरह चेष्टाकर चलते फिरते लक्ष्य को भेदन कराने की सामर्थ्य करने के लिये शिकार खेला जाता है, संकट में पड़े कार्य के विस्तार करने की चतुरता प्राप्त करने के लिए जुआ खेला जाता है, शरीर की दृढ़ता के लिए मांस खाया जाता है,