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उपर्युक्त वर्णन से मार है कि यहाँ विद्यावरों के आर्य और मासंग नामक दावेद थे और इन दो भेदों के भी प्रभेद थे । ये अपने-अपने निश्चित वेष में ही भ्रमण करते थे और आभूषागों को अपने अपने चिन्हों से ऑकत रखते थे | प्रत्येक का अपना अपना स्तम्भ था जिसका आश्रयकर ये बैंठते थे और तत्तत् स्तम्भों के आधार पर ही इनके निकायों के नाम प्रसिद्ध हो गये। ये स्तम्भ विद्या निर्मित होते थे विधुदवेग का गौरी विद्याओं के स्तम्भ का सहारा लेकर बैठने मे यह कथन सिद्ध होता हो । विद्याबल से आकाश में गमन करने की शक्ति के कारण इनके लिए खेचर शब्द का उपयोग हुआ है।
महामाण्डलिक- मण्डल का प्रशासक महामण्डलेश्वर (महामाण्डलिक) कहा जाता था। परन्तु कभी कभी छोटे प्रभेद पर भी हमें महामण्डलेश्वर शासन करते मिलते हैं। सम्भवत: इम्पका कारण यही प्रतीत होता हैं कि ये छोटे प्रदेश या तो इनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति थे अधवा राजा की ओर से उपहार दिए जाते थे । जयसिंह के शासनकाल में दधिप्रद मण्डल के महामण्डलेश्वर वपनदेव थे। महामण्डलेश्वर की नियुक्ति केन्द्रिय सरकार द्वारा होती थी । साधारणतया किसी राजवंश का अथवा अत्यन्त विश्वसनीय व्यक्ति ही इस पद पर नियुक्ति किया जाता था । दोहद्र-प्रस्तर लेख से पता चलता है कि महामण्डलेश्वर वपनदेव की कृपा से राणाशंकर सिंह पहान् पद का प्राप्त कर सके । सम्भवत: महामण्डलेश्वरों का स्थानान्तरण एक मण्डल से दूसरे मण्डल में किया आता था और प्रत्येक नए राजा के आगमन पर इसमें साधारणतया या तो परिवर्तन होता था. या उन्हें स्थाया कर दिया जाता था।
मण्डलाधिय (माण्डलिक)- शुक्रनीति के अनुसार माण्डलिक राजा उन कहते थे. जिनको आय 4 लाख से 10 लाख चाँदी के कार्पोपण होती थी। ये मण्डल के स्वामी होते थे मण्डल शामन की सबसे बड़ी इकाई थी जिसको समानता आधुनिक प्रान्त से की जा सकता है।
सामन्त- दौत्यकायं तथा विभिन्न बुद्धों के प्रसंग में सामन्तों का उल्लेख पदमचरित में आया है। एक बार जन्न रावण के मन्त्रियों ने सखण से राम के साथ सन्धि करने का आग्रह किया तय रावण ने बचन दिया कि आप लोग जैसा कहते हैं वैसा ही करुंगा । इसके बाद मन्त्र के जानने वाले मन्त्रियों ने सन्तुष्ट होकर अत्यन्त शोभायान एवं नीतिनिपुण सामन्त को सन्देश देकर शोघ्र ही दूत के रूप में भेजने का निश्चय किया।54 4 उस सामन्त दूत का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वह बुद्धि में शुक्राचार्य के समान था, महाओजस्वी और प्रतापी था । राजा लोग इसकी बान मानते थे तथा वह कर्णप्रिय भाषण करने में निपुण था। वह सामन्त सन्तुष्ट स्वामी को प्रणाम कर जाने के लिए उद्यत हुआ। अपनी बुद्धि के बल से यह समस्त लोक की गोष्पद के समान तुम्बड़ देखता था' | जब बह जाने लगा तब नाना शास्त्रों से युक्त एक भयंकर सेना जो उसकी बुद्धि से ही मानो निर्मित थी, निर्भय हो उसके साथ हो गई । दूत की तुरहो का शब्द सुनकर वानर पर के सैनिक क्षुभित हो गये और रावण के आने को शंका करते हुए भयभीत हो आकाश की और देखने लगे | सजा अतिवीर्य ने जिस समय भरत पर आक्रमण करने के लिए पृथ्वीधर राजा के पास संदेश भेजा, अपनी तैयारी का वर्णन करते हुए वह लिखता है कि इस पृथ्वी पर मेरे जो सामन्त हैं वे खजाना और सेना के साथ मेरे पास है । इस सब उस्लेखों से सामन्त की महत्ता स्पष्ट होती है।