Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri

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Page 63
________________ 53 उनकी रक्षा करना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो राज्य का परिवर्तन होने पर, चोर, डाकू तथा समीपवर्ती अन्य राजा लोग उसके इन सेवकों को पीड़ा देने लगेंगे । (च) कण्टक शोधन :- राजा को चाहिए वह चोर, डाकू आदि की आजीविका बलात् नष्ट कर दें, क्योंकि काँटो को दूर कर देने से ही प्रजा का कल्याण हो सकता है । (छ) सेवकों को आजीविका देना:- जिस प्रकार ग्वाला नवीन उत्पन्न हुए बच्चे को एक दिन तक माता के साथ रखता है, दूसरे दिन दया युक्त हो उसके पैर में धीरे से रस्सी बांधकर खूँटी से बाँधता है, उसकी जरायु तथा नाभि के नाल को बड़े यत्न से दूर करता है, कीड़े उत्पन्न होने की शंका होने पर उसका प्रतीकार करता हैं। और दूध पिलाना आदि उपायों से उसे प्रतिदिन बड़ता है, उसी प्रकार राजा को भी चाहिए कि वह आजीविका के हेतु अपनी सेना के विरुद्ध आये हुए सेवकों को उनके योग्य आदर सम्मान से सन्तुष्ट करे और जिन्हें स्वीकृत कर लिया है तथा जो अपने लिए क्लेश सहन करते हैं ऐसे उन सेवकों की प्रशस्त आजीविका आदि का विचार कर उनके साथ योग और क्षेम का प्रयोग करना चाहिए । अर्थात जो वस्तु उनके पास नहीं है. उन्हें देनी चाहिए और जो वस्तु उनके पास है, उसकी रक्षा करनी चाहिए । वह (ज) योग्य पुरुषों की नियुक्ति :- शकुन आदि का निश्चय करने में तत्पर रहने वाला ग्वाला जब पशुओं को खरीदने के लिए तैयार होता है तब वह ( दुध आदि की) परीक्षा कर उनमें से अत्यन्त गुणी पशु खरीदता है, उसी प्रकार राजा को भी परीक्षा किए हुए उच्चकुलीन पुत्रों को खरीदना चाहिए और आजीविका के मूल्य से खरीदे हुए उन सेवकों को समयानुसार योग्य कार्य में लगा देना चाहिए क्योंकि यह कार्यरूपी फल सेवकों द्वारा ही सिद्ध किया जा सकता है। जिस प्रकार पशुओं को खरीदने में किसी को प्रतिभू (साक्षी) बनाया जा सकता है उसी प्रकार सेवकों का संग्रहण करने में भी किसी बलवान् पुरुष को प्रतिभू (साक्षी) बनाना चाहिए । (झ) कृषिकार्य में योगदेना:- जिस प्रकार ग्वाला रात्रि में प्रहरमात्रशेष रहने पर उठकर जहाँ बहुत सा घास, पानी होता है ऐसे किसी योग्य स्थान में गाय को बड़े प्रयत्न से चराता है तथा बड़े सवेरे ही वापिस लाकर बछड़े के पीने से बाकी बचे हुए दूध को मक्खन आदि प्राप्त करने की इच्छा से दुह लेता है, उसी प्रकार राजा को भी आलस्यरहित होकर अपने अधीन ग्रामों में बीज देना आदि साधनों द्वारा किसानों से खेती कराना चाहिए। वह अपने समस्त देश में किसानों द्वारा भली भाँति खेती कराकर धान्य संग्रह करने के लिए उनसे न्यायपूर्ण उचित अंश ले। ऐसा होने से उसके भंडार आदि में बहुत सी सम्पदा इकट्ठी हो जायेगी। उससे उसका बल बढ़ेगा तथा सन्तुष्ट करने वाले धान्यों से उसका देश भी पुष्ट अथवा समृद्धिशाली हो जाएगा । (ज) अक्षरम्लेच्छों को वश में करना :- अपने आश्रित स्थानों पर प्रजा के दुख देने वाले जो अक्षरप्ले हैं। उन्हें कुल शुद्धि प्रदान करना आदि उपायों से अपने अधीन करना चाहिए। अपने राजा से सत्कार पाकर वे फिर उपद्रव नहीं करेंगे। यदि राजाओं से उन्हें सम्मान प्राप्त नहीं होगा तो वे प्रतिदिन कुछ न कुछ उपद्रव करते रहेंगे। जो अक्षरम्लेच्छ अपने ही देश में संचार करते हो, उनसे राजा को कृषकों की तरह कर अवश्य लेना चाहिए * । जो अज्ञान के बल से अक्षरों द्वारा उत्पन्न हुए अंहकार को धारण करते हैं, पापसूत्रों से आजीविका करने वाले वे अक्षरम्लेच्छ

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