________________
51
होती है। आत्मा का स्वरूप न जानने वाला जो क्षत्रिय अपनी आत्मा की रक्षा नहीं करता है.. उसकी विष, शस्त्र आदि से अवश्य ही अपमत्यु होती है, अथवा शत्रुगण तथा क्रोधो. लोभी और अपमानित हुए सेवकां से उसका अवश्य ही विनाश होता है और अपमृत्यु मे मग़ प्राणो दुःखद तथा कठिनाई से पार होने योग्य इस संसार रूपी आवर्त में पड़कर टुर्गतियों के दुःख का पात्र होना
आचार्य सोमदेव ने भी कहा है कि रक्षा होने पर समस्त राष्ट्र सुरक्षित रहता है, अत: उसे स्वकीय और परकीय जनों से मदा अपनी रक्षा करना चाहिए । राजा अपनी रक्षा के लिए ऐसे पुरुष को नियुक्त करे जो कि उसके वंश का हो अथवा वैवाहिक सम्बन्ध से बंधा हुआ हो तथा शिक्षित, अनुरक्त और कर्तव्यकुशल हो । राजा विदेशी पुरुष को, जिसे मान आदि देकर सम्मानित न किया गया हो और पहले सजा पाए हुए स्वदेशवासी व्यक्ति को जो बाद के अधिकारी बनाया गया हो. अपनी रक्षा के लिए नियुक्त न करें, क्योंकि विकृतचित्त (देश्युक्त) पुरुष कौन कौन से अपराध नहीं करता है। विक्रतचित हो जाने पर माता भी राक्षसी हो जाती है । राजा के पास स्त्रियों और पास रहने वाले कुटुम्बी व पुत्र होते है। अत: सबसे पहले उसे इनसे अपनी रक्षा करनी चाहिए। पति द्वारा सौत रखना, पति का मनोमालिन्य, अपमान, सन्तान न होना चिरविरह इनसे स्त्रियां पति से विरक्त हो जाती है। स्वियों में स्वाभाविक गुण या दोष नहीं होते हैं, किन्तु ग्यमुद्र में प्रविष्ट हुई नदी के समान पति के गुणों से गुण या दोषों से दोष उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार मीप की बांबी में प्रविष्ट हुआ मेंढक नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार जो राजा स्त्रियों के गृह में प्रविष्ट होते हैं, वे अपने प्राणों को खो बैठते हैं । राजा अपने प्राणों को रक्षा के लिए स्त्री के घर से आयी हुई कोई भी वस्तु का भक्षण न करें | वह स्वंय भक्षण करने योग्य भोजनादि के कार्य में स्त्रियों को नियुक्त न करें-75 | राजा द्वारा जब सजातीय कुटुम्बियों के लिए तंत्र (सैन्य ) व कांश बढ़ाने वालो जीविका दी जाती है तो वे विकारयुक्त हो जाते हैं। जब राजा निकाटती लोगों को सम्मान देकर जीवनपर्यन्त ठनका संरक्षण करता है तो वे अभिमानश (राज्यलोभ से) राजा के घातक हो जाते हैं। राजा को अपने पर श्रद्धा रखने वाले, भक्ति के बहाने कभी विरुद्ध न होने वाले. नम्र विश्वसनीय र अज्ञाकारी सजातीय कुटुम्बी व पुत्रों का संरक्षण करते हुए उन्हें योग्य पदों पर नियुक्त करना चाहिए । जन्न राजा के समातीय कुटुम्बी लोग तंत्र (सैन्य) कोशशक्ति से अलिष्ट हो जाय , उस समय उनके वश करने का उपाय यह है कि वह अपने शुभचिन्तक प्रामाणिक पुरुषों को अग्रसर नियुक्त कर उनके द्वारा कुटुम्बियों को अपने में विश्वास उत्पन्न कराये अथवा उनके पाय गुप्तचर नियुक्त करें । पुत्र. भायां बगैरह कुटुम्बोजनों का मूर्खतापूर्ण दुराग्रह अच्छी युक्तियों द्वारा नष्ट कर देना चाहिए।
(5) प्रजापालन:- वह क्या राजा है, जो अपनी प्रजा को रक्षा नहीं करता है-1 राजा का कर्तव्य है कि वह प्रजाकार्य को स्वंग ही देखें । जिस प्रकार ग्वाला आलस्य रहित होकर बड़े प्रयत्न से गायों की रक्षा करता है, उसी प्रकार राजा को भी अपनी प्रजा की रक्षा करनी चाहिए। राजा के रक्षणकार्य को कुछ रीतियों निम्नलिखित है, जिन्हें ग्वाले के दृष्टान्त से स्पष्ट किया गया है
(क) अनुरुप दण्ड देना:- यदि गायों के समूह में से कोई गाय अपराध करती है तो वह ग्वाला उसे अंगच्छेदन आदि कठोर दण्ड नहीं देता हुआ अनुरुप दण्ड से नियंत्रित कर जैसे उसको