Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri
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15. पद्मचरित 4/67-74 16. घरांगचरित (अनु. प्रो. खुशालचन्द्र
गोरावाला) भूमिका पृ. 25 17. वरांगचरित 1/51 78. वहो 1152 19. वहीं 21/75 20. वही 22/3 21. वसंगचरित 19169 22. हरिसंशपराण ज्ञानपीठ प्रकाशन) प्रस्तावना १.3 23. वही प्रधान सम्पादकीय पृ.३ 24, हरि. 11/59 25. वही 2/149 26. वही 17/17 27 वही 23/1 28, यही 29/17 29. वही 27154 30. हरि.2/149 31. वही 11/57-59 32, वही 43:57 33. बही 27/54 34 हरि. 52/84 35. हरि. 14/98 ॐ. हरि.14/110 37. हरि.45/5B 38 हरि 05/84 39. हरि 062/51 40.दिवसन्धान महाकाव्य (ज्ञानपीठ प्रकाशन)
प्रधान सम्पादकीय पृ. 22 41. वहीं 4/14 42.द्वि.4/17 43. द्वि. म.4/19 44.हि. म.4/20 45. द्व. म. 4/53 46. यही 18/136 47. वही 18/142 48 वहीं 18/144 49.द्वि. म.4/13 50. नश्यन्ति वास्थान कृत प्रयासाः द्वि. म. 5/5 51. द्विसन्धान महाकाव्य 10/28 52. द्वि. म. 10/30 53.हि.म. 10/31 S4, द्वि. म.1114 55, वही 11/16
56.द्वि.म. 11/20 57. द्वि. म. 11/26 58. वि. म. 11/21 59. वि. म. 11/34 60.दि.म. 11/39 61. वहीं 914 62. कौटिलीय अर्थशास्त्रम् 7/13 63.द्वि. म. 11/11 64. द्वि. म. 13/24 65.स्वायांसतन्त्रं हि जयं निराहु: । द्वि.म.16:47 67. द्वि. म. 17/32 86. दि. म, 18/118 69. 70. गद्यचिन्तामणि (ज्ञानपीठ प्रकाशन)
प्रस्तावना पृ. 14-15 11. गद्यचिन्तामणि द्वितीय लम्भ पृ. 124
129, प्रथम लम्भ पृ.65 72. गद्यचिन्तामणि द्वितीय लाभ पृ. 124 73. गद्यचिन्तामणि दशम लम्भ पृ. 353- 356 74.क्ष, चू. 10/22 75. क्ष.चु. 10/18 क्ष. चू. 1012 76. रघुवंश सर्ग, ! श्लोक 24
क्षत्र छुड़ामणि 11:4 रघु. सर्ग 17. श्लोक 49 क्षत्र. 11/7 रघु, 01/30 छत्र. 11/19 रघुवंश, 1745-50 गयचिन्तामणि,
लभ्ये ॥ पैरा. 3 77. पावैभ्युदय 78. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्रोः संस्कृत काव्य
केविकास में जैनकवियों का योगदान पृ.
472-273 79. वही पृ. 472 80.आदिपुराण (ज्ञानपीठ प्रकाशन) प्रस्तावना
पृ. 25 81. वहीं 47 82. वही 42134,412 139 83. वही 47 84. राजवियपरिज्ञानादैहिकेऽथे दृढ़ा मतिः ।
आदि.42/34 85. वहीं 11/81 8. आदि. 41/739,4/136 87, आदि. 11:33 88.आदिपुराण (ज्ञानपीठ प्रकाशन) प्रस्तावना
पृ. 27-28

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