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चतुर्थ अध्याय
राजा राजा का महत्व - पद्यचरित में समस्त संसार की मर्यादा राजा द्वारा हा सुरक्षित मानो गई हैं । राजा धर्मों की उत्पत्ति का कारण है । राजा के बाहुबल को छाया का आश्रय लेकर प्रजा सुत्र से आत्मध्यान करती है तथा आश्रमवासी विद्वान निगकुल रहते हैं । जिस देश का आश्रय पाकर साधुन तपश्चरण करते है, उसकी रक्षा के कारण राजा तप का छठा भाग प्राप्त करता है । पृथ्वीतल पर मनुष्यों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का अभिलार है वट गानाःों दारा मामा भागों में ही प्राप्त होता है। राजा के होने पर जितने श्रावक आदि सत्पुरुष हैं वे भावपूजा करते हैं। वे अंकुर उत्पन्न होने की शक्ति से रहित पुराने धान्यादि द्वारा विधिपूर्वक यज्ञ करते हैं । निर्ग्रन्थ मुनि शान्ति
आदि गुणों से युक्त होकर ध्यान में तत्पर रहते हैं तथा मोक्ष का साधनभूत उत्तम तप तपने हैं। जिनमन्दिर आदि स्थलों में मिनेन्द्र भगवान् की बड़ी-बड़ी पूजायें तथा अभिषेक होते हैं 1पृथ्वोतल पर ओ कुछ भी सुन्दर, श्रेष्ठ और सुखदायक वस्तु है । राजा ही उसके योग्य है ।
- हरिवंश पुराण के अनुसार जिस प्रकार समुद्र हजारों नदियों और उत्तम रत्नों की खान है. उसी प्रकार राजा भी इस लोक में अनर्थ्य वस्तुओं की खान हैं । वह प्रभु है और पृथ्वी का वश में करने वाला है। वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं मात्सर्य इन छह अन्तरंग शत्रुओं का जोतने वाला तथा धर्म, अर्थ, कामरूप विवर्ग का प्रवर्तक है" । धर्म, अर्थ और कामविषयक कोई भी वस्तु उसे दुर्लभ नहीं है" | उसे मनुष्यों की रक्षा करने के कारण नृप पृथ्वी की रक्षा करने के कारण धूप और प्रजा को अनुरण्जित करने के कारण राजा कहते हैं। । उतम राजा के राज्य में प्रजा का सब समय आनन्द से बीतता है। घर के उपयोग के लिए साधारण रीति से तैयार किया हुआ थोड़ा सा अन्न भी दान के समय धर्मात्माओं को भोजन में आने से सायंकाल तक भी समाप्त नहीं होता है। जिस प्रकार सूर्य प्रकृष्ट सन्ताप का कारण होता है, उसी प्रकार राजा भी उत्कृष्ट प्रभाव का कारण होता है । जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणों से दिकचक्र को व्याप्त कर लेता है, उसी प्रकार
राजा भी अपने कर (टैक्स) से दिक्चन को व्याप्त करता है। उत्तम राजा के विद्यमान होने पर । प्रजा शत्रुओं का भय छोड़ देती है । नौतिवेत्ता राजा पृथ्वी को स्त्री के समान वश में कर लेता
है" । न्यायमार्ग का खेत्ता होने के कारण किसी विषय में विसंवाद हो पर लोग उसके पास न्याय के लिए आते हैं। राजा की अध्यक्षता में विद्वानों के सामने लोग जय अथवा एसजय को प्राप्त करते हैं। न्याय द्वारा वाद के समाप्त हो जाने पर वेदानुसारी लोगों की प्रवृत्ति सन्देहरहित एवं मन्त्र लोगों का उपकार करने वाली हो जाती है" । राजा धर्म, अर्थ और काम में परस्पर बाधा नहीं पहुंचाता
वादीभसिंह के अनुसार राजा द्वारा समस्त पृथ्वी एक नगर के समान रक्षित होने पर राजन्नता (श्रेष्ठ राजा वाली) और रत्नस (रत्नों की खान) हो जाती है |
राजा जन्म को छोड़कर सब बातों में प्रजा का मासा-पिता है, उसके मुख-दुःख प्रजा के आधीन है21 राजा अधःपतन से होने वाले विनाश से रक्षा करता है, अत: संसार की मिनि पारी