Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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___ अथ श्री गौतम स्वामि प्रश्नोत्तर रूप बार आरानुं स्तवन द्रहा-सरसति भगवति भारती,ब्रह्माणि करि सार; आरा बार तणो वली, कहि श्युं सोय विचार ॥१॥ वर्द्धमान जिनवर नमुं; जस अतिशय चोत्रीश; समवसरण बेठां प्रभु, वाणी गुण पांत्रीस ॥२॥ गौतम पूच्छे वीरने, पर उपगारा कांक्षि; अनेक बोल विवरी करी, भाखे त्रिभुवन स्वामि ॥३॥
ढाल ॥१॥ चोपाइ ॥ स्वामी वचन कही सुकुमाल, कहीएं अवसर्पिणी काल; दस कोडा कोडि सागर जोय, तिहां षटु आरा गौतम होय ॥ ४ ॥ सुसम सुसमा पहेल्लं सार, त्यारे युगल धरे अवतार; बीजो सुसम आरो कहुं, त्यारे युगल युगनी लहुं ॥ ५॥ सुसम दूसम त्रीजो वली, त्यारे युगल कहें केवली; अंति कुलगर हुआ सवि, नाभि हुआ आदिश्वर तात ॥ ६॥ दूहा-आदि । धर्म जिने स्थापी ओ; शिखव्यां पुरुष अत्यंत; तृतीय आरा मांहि वली, मुक्ति गया भगवंत ॥७॥ ढाल-॥२॥ मनोहर हीरजी रे ॥ ए देशी ॥ राग परजी ओ ॥ पछि वली गौतम चोथे आरे, हुआ वीस जिणंद; एकादश चक्रवर्ति तिहां होय, त्रीजें भरत नरिं दो ॥ ८॥ गौतम सांभलो रे |
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