Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
SM Mahavam
A
kende
www.kobateh.org.
Achan Kailas
Gyamandi
राग-धन्यां श्री-गिरुआरे गुण तुम तणां ॥ ए देशी ॥ कल्याणक दिन गाइएं, भविहर्ष धरी। बह मानोरे;॥ प्रभु गुण स्मरण नित्य करी, तप करीएं थइ सावधानोरे; कल्या०॥ए आंकणी ॥१॥ ॥१॥ तेह कल्याणकनुं गणो, वलि गणणुं दोय हजारोरे; वर्तमान चोवीशीएं, कल्याणक दिन अति सारोरे; क०॥२॥ इंम अनंत चोवीशी धारीएं, तो अनंत कल्याणक थायरे; उजमणुं पण कीजिएं, धरी भक्ति शक्ति निरमायरे; क०॥३॥ संवत अढारसें साडत्रिशनां, माहवदि बिजनें शनिवारेंरे; शोभन योगें शोभन थयुं, प्रभु गाया हरख अपारोरे; क० ॥ ४ ॥ पाटण चोमासुं रही, लही जिन उत्तम सुपसायारे, पद्मविजय पूण्यें करी, इम थूणी श्री जिनरायारे; क०॥५॥
“इति श्री चोवीश जिन कल्याणकस्तवनम् संपूर्णम्” ___“अथ श्री सम्यक्त्व विचार गर्भित श्री महावीर जिन स्तवनम्" ॥दोहाः-प्रणमी पद जिनवर तणां, जे जगनें अनुकुल; जास पसाये में लद्यु, समकित रयण अमूल ॥१॥ ते जीम वीरें उपदिश्यु, परखदा माहिं अनूप; तिमहं वर्णवीश हवे, समकित शुद्ध स्वरूप ॥२॥
IN
For Pale And Personal use only