Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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ShiMahayeJainrachanaKendra
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Acharya Sh Kailasager
Gamandi
रोहिणी
कर
देख्यो नहीं ॥ मुजने तमासो आज हासो देखतां आवेसही ॥ २ ॥ ढाल पूर्वली-इण अवसरेरे । स्तवनम रीसाणो राजा कहे ॥ तुं पापणरे परनी पीडा नविलहें ॥ एह दुखणीरे पुत्र मुए तडफड करे ॥ जब वीतेरे वेदन जाणी जेतरे ॥ त्रटक-न जाणे वेदन तुंह परनी गरवगहेली कामिनी ॥ इम कही राजा हाथ घाल्यो तेहना बालक भणी ॥ सातमी भूमिथी तले नाख्यो तिसे हाहाकार थयो । रोहिणी हस्ती कहे प्रीतमने पुत्रनीचो किमगयो ॥३॥ ढाल पूर्वली-हवे राजारे पुत्रतणे शोकें करी॥थयो मुर्छितरे रोवेछे आंख्यां भरी ॥ पडतो सुतरे शासनदेवी झालीयो ॥ कंचनमेंरे सिंघासण बेसारीयो॥त्रटक-करजोडी आगल बैसे सिंघासण करे नाटक देवता ॥ गोद खिलावे | अनें हसावे पादपंकज सेवता ॥ उपन्यो भूपतिने अचंभो देखीये कारण किस्यो ॥ जे कोइ ज्ञानी गुरु पधारे पूछीये संशय इस्यो ॥ ४ ॥ ढाल पूर्वली-चिंतवतारे चारण आयाछे इसे ॥ राजा पणरे पोहतो वंदनने तिसे ॥ सुणी देशनारे पूछे प्रश्न सुहामणो ॥ कहो खामीरे पूरवभव |बालक तणो ॥ त्रूटक-बालकतणो भव भूप पुछे कहे इणपरे केवली॥ रोहिणीराणी तणो भवांतर
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