Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 399
________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendis श्री रोहिणी ॥१९५॥ www.kobatirth.org. थयो ए शिर उपर लाडो ॥ ७ ॥ इम वीवाह थयो भलो ए दीयां दान अपार ॥ घरआया परणी करी ए हरख्यो परीवार ॥ वीतशोक निजपुत्र भणी ए आपणो पाट दीधो ॥ आपण संजम आदयों ए जगमें जशलीधो ॥ ८ ॥ ढाल - २ - बीजी ॥ हवे भवीयणरे पांचम उजमणो सुणो-ए देशी ॥ तिण नयरीरे चित्रसेन राजाथयो । सुख मांहिरे केटलो काल वहीगयों ॥ इण अवसररे आठ | पुत्रजाया भला ॥ चढतें पखरे चंदजिसी चढती कला ॥ त्रूटक - चढतीकला हवे रायबेठो पास बेठी रोहिणी ॥ सातमें छातें कंतसेती करे क्रीडा अतिघणी ॥ आठमो बालक गोद उपर रंगश्युं राणीलीयो ॥ पुत्रने प्रीतम आंख आगल देखतां हरखे हीयो ॥ १ ॥ ढाल पूर्वली - एक कामि - नीरे गोखे चढी दृष्टि पडी ॥ तडफडतीरे रोवे रीषें बापडी । बुढापणरे मनगमतो बालक मुओ ॥ डुंतो एकजरे तिण अधिकेरो दुःख हुओ ॥ त्रूटक - दुःखद्दुओ अधिको देखी रोहिणी हवे कहें प्रीतम भणी ॥ ए नारी नाचे अने कुदे किम कहो मोटाधणी ॥ एहवो नाटक आज तांइमें कदी For Pivate And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनम् | ॥ १९५॥

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