Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 411
________________ श्री मौन एकादशि स्तवनम् // 201 // PASTASIAKASASAK कलश-इम सयल सुखकर दुरीत दुखहर-भवीक तरु नव जलधरु, भवताप वारक जगत तारक-जयो जिनपति जगगुरु; सत्तरसे ओगणोत्तरा वर्षे-रही डभोई चोमासए, शुद मास मृगशिर तिथि इग्यारम-रच्या गुण सुवीलासए ॥१॥इम थोइ मंगलं कोड भवना-पाप रज दुरेहरे, जयवाद आपे कीर्ति स्थापे-सुजस देसोदेस वीस्तरे; तप गच्छ नायक विजयप्रभ गुरु-शिष्य प्रेम-13 |विजय तणो, कहे कांति थुणता भवीक भणता-पामीए मंगल अतिघणो // 2 // "इति श्री मौन एकादशी माहात्म्ये सुव्रतसेठवर्णननाम स्तवनम् संपूर्णम्" "श्री महावीर तप, नमस्कार" नव चौमासि तपकस्यां, त्रणमाशि कस्यां दोय; दोय दोय अढीमासि तिम, डोढमासि होय // 1 // बहोतेर पास क्षमणकया, मास क्षमण कखां बार; षट्मासितिम आदखां, बार अठ्ठम तपसार // 2 // षट्मासि एक तिम कखो, पणदिन उण षट्मास; बसो ओगणत्रिस छठभला, दिक्षा दीन एक खास // 3 // भद्र प्रतिमा दोय तिम, पारण दिन जास; द्रव्याहार पानक कह्यो, त्रणसे ओगण पंचास // 4 // छद्मस्थे इणिपरे रह्यां, सह्या परिसह घोर; श्रुक्ल ध्यान अनले करि, बाल्यां कर्मक कठोर // 5 // 2034 श्रुक्ल ध्यान अंतर रह्याए, पाम्या केवल नाण; पद्मविजय कहे प्रणमता, लहिए नित्य कल्याण " // इति महावीरनमस्कार-स्मपूर्णम्-समासः॥" 2 01 // AS. For And Personale Only

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