Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 410
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री मौन एकादशि www.kobahrth.org सहे कृष्ण नरिंद, छेदनहो प्रभु छेदन भव भयनी व्यथाजी ॥ १ ॥ पर्षदाहों जिन पर्षदा लोक तीवार, भावेंहो तिहां भावें इग्यारस उचरेजी; एहथीहो जीन एहथी भवीक अपार, सहेजेहो भंव सहेजें भव सायर तरेजी ॥२॥ तारकहो जिन तारक भवथी तार, मुजनेहो जिन मुज नीरगुणने हित करिजी; साचीहो जिन साची चीत अवधार, किधीहो जिन किधि ताहरी चाकरीजी ॥ ३ ॥ करसुंहो जिन करसुं जो तप साध, तुमचीहो जिन तुमची तिहां मोटीम कीसीजी; देइसहो जिन देइस तुंही समाध, एवडिहो जिन एवडि गाढिम कांइसीजी ॥ ४ ॥ छेहडोहो जिन छेहडों साह्यो आज, महोटी हो जिन महोटी में आस्याकरिजी; दिधाहो जिन दिधा विण माहराज, छूटीसहो जिन छूटीस किमविण दुख हरिजी ॥ ५ ॥ भव भव हो जिन भव भव सरणो तुज, तुजने हो जीन तुजनें कहुं केतु वलीजी; देज्यो हो जिन देज्यो सेवा मुज, रंगेहो जिन रंगे प्रणमुं लली ललीजी | ॥ ६ ॥ त्रिजीहो जिन त्रीजी पूरी ढाल, प्रेमेंहो जिन प्रेमे कांतिविजय कहेजी; नमताहो जिन नमता नेमी दयालु, मंगलहो जिन मंगल माला महमहे जी ॥ ७ ॥ For Pivate And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनम्

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