Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 409
________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobathrtm.org Achan Kailas Gyamandi श्री मौन एकादशि ॥२०॥ एकसो अट्ठम साररे, षट्मासीरे एक चौमासी च्याररे; इत्यादिकरे सुव्रत मुनिवर तपकरे, इग्या स्तवनम् रसरे तिथिसेवे मुनि मनखरे ॥ त्रूटक-मनखरे पाले सूद्ध संयम, एक दिवस ए रुषितणे; थइ । उदर पीडा तेणे दिवसे, अछे सुव्रत व्रतपणे; एक देव वयरि पूर्व भवनो, चलावा आव्यो तिहाः || | मुनिराज सुव्रत तणे अंगे, वेदना किधि जीहां ॥ ६॥ ढाल पूर्वली-समता धरीरे नीश्चल मेरुपरें । रह्यो, सुर परिसहरे धीर थइने सांसह्यो नवि लोपेरे मौन सवत मुनि राजीओ, औषध पिणरे सुर दाख्यो पिण नवीकियो । त्रुटक-नवी कियो औषध रोगहेते, असुर अतिकोपें चख्यो; पाटु प्रहारें हणे तिवारे, मीथ्यामत पापे मढ्यो; रुषि क्षपकश्रेणि चढिय केवल, ग्यानलही मुगते गयोः । इम ढाल बीजी कांति भणतां, सकल सुख मंगल थयो ॥७॥ ढाल-३-त्रीजी॥ शीता होसथी शीताकहो सणिराम॥अथवा ॥ ॥२०॥ दीठीहो प्रभु दीठी जगगुरु तुज-ए देशी ॥ भाषीहो जिन भाषी नेम जीणंद, इणीपरेंहो जिन इणिपरें सुव्रतनी कथाजी; सद्दहेहो जिन For Pale And Personal use only

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