Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text ________________
Shi Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री मौन एकादशि
॥१९९॥
www.kobahrth.org.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ढाल - २ - बीजी ॥ एकवीसानी ॥ पांच पोथीरे ॥ ए देशी ॥
एक दिवसरे सेठ सुव्रत पोसह करि, सहु कुटंबेरे रयणी समे काउस्सग्ग करि; तव आव्योरे चोर लेवा धन आंगणे, कसी बांधीरे धननि गांठडि तत्क्षीणे ॥ त्रूटक-तत्क्षीणे बाचें द्रव्य बहुलो, शिर उपाडि संचरे; तव देवी सासन तेणे थंभ्या, चीत्त चिंता अतिकरे; दीठा प्रभाते कोटवाले, बांधि | सुंप्या रायने; वध हुकम दीधो राय तव तिहां, सेठ आव्या धाइनें ॥ १ ॥ ढाल पूर्वली - नृप आग लेरे सेठ मुकिने भेटणो, छोडाव्यारे चोर सहुनां बंधणो; जगमां वाध्योरे महिमा श्रीजिन धर्मनो, | केइ छांडेरे मिथ्यात्व मार्ग भर्मनो ॥ त्रूटक - मीथ्यात्व मार्ग तजिय पुरिजन, जैन धर्म अंगीकरे; एक दिवस धि धिग् करत उद्भट, अग्नि लागि तिणपुरें; बाले ते मंदिर हाट सुंदर, लोक नाहठा धसमसी; सहुकुटुंब पौसध सहित तिणदिन, सेठ बेठा समरसी ॥ २ ॥ ढाल पूर्वलीजन बोलेरे सेठ सलूणा सांभलो, हठ न करोरे नासो अग्निमां कांबलो; सेठ चिंतेरे ए परिसह
For Private And Personal Use Only
स्तवनम्
॥ १९९॥
Loading... Page Navigation 1 ... 405 406 407 408 409 410 411