Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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श्री मौन एकादशि
॥१९८॥
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कृष्ण कहे सुव्रत कीस्योरे, किम पाम्यो सुख सात; नेम कहे केशव सुणोरे, सुव्रतना अवदात ॥ त्रूटक - सुव्रतनां अवदात वखाणुं, घातकिखंड विजयपुर जाणुं; पृथवीपाल तिहां राजा बीराजे, | चंद्रावति राणी तस छाजे ॥ जी जीणंद जीजीरे ॥ ५ ॥ ढाल पूर्वली - वास वसें व्यवहारियोरे, सुर नामे तिहां एक; सुगुरु मुखे एक दिन ग्रहेरे, इग्यारस सुविवेक ॥ त्रूटक - इग्यारस सुविवेके लिधि, रुडी उजमणा विधि कीधि; पेट शुलथी मरण लहीनें, पहोतो इग्यारमें स्वर्ग वहीनें ॥ जी जीणंद जीजीरे ॥ ६ ॥ ढाल पूर्वली - एकवीस सागर तणोरे, पाली नीरुपम आय; उपन्यो जीहां ते कहुरे, सुणजो यादवराय ॥ त्रूटक-सुणजो यादव राय एक चीते, सौरिपुर वसे सेठ समृध दत्ते प्रीतीमती तस धरणी पेटे, पुत्रपणे उपन्यो पुन्य भेटे ॥ जी जीणंद जीजीरे ॥ ७ ॥ ढाल पूर्वली - जन्म समयें प्रगट हुआरे, भूमीथी सबल निधान; उच्चीत जाणी तस स्थापीयोरे, | सुव्रत नाम प्रधान ॥ त्रूटक-सुत्रत नाम ठव्युं मायताये, वाध्यो कुमर कलानिधि थाय; कन्या
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स्तवनम्
॥१९८॥
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