Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 403
________________ S anna Kende Acharya Sh Kailasegar yanmandie श्री मौन ॥३॥ करी अणसण आराधना ॥ वली केवल शीवपद पायोरे ॥ जिन वाणी आणी हिये ॥ प्रभु स्तवनम् एकादशिचरणे चित्त लायोरे ॥ इम महिमा रोहिण तणो॥ ४॥ मनमोहन महिमा वध्यो ॥ में स्तव्यो । शिवपुर गामीरे ॥ मनमान्या साहिब तणी ॥ हवे पुण्ये सेवा पामीरे॥इम महिमा रोहिणतणो॥५॥ ॥१९७॥ | कलश-इम गगन दुय मुनिचंद वर्षे चोथ श्रावण शुदि तणी ॥ में कह्यो रोहिण तणो | ६ महिमा सुगुरु जिम मुखमें सुण्यो ॥ वासुपूज्य अमने थया सुप्रसन्न चित्तनी चिंता टली ॥ श्रीसार जिनगुण गावत्तां हवे सकल मंगल आशा फली ॥१॥ __"इति श्री रोहिणी स्तवनं सम्पूर्णम्" "श्री मौन एकादशि महात्मे सुव्रत सेठ वर्णन नाम स्तवनम्" ढाल-१-पहेली ॥ चंद्राउलानी जंबु द्वीपना भरतमारे-ए देशी॥ द्वारीका नगरिं समोसस्यारे, बावीसमा जिन चंद; बे कर जोडि भावसुंरे, पूछे कृष्ण नरिंद ॥ GARAIGUSLIK********* ॥१९७॥ For Prve And Personal use only

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