Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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स्तवनम्
श्री मौन : इग्यार वस्यो समजोडी, इग्यार होय घर सोवन कोडी ॥ जी जीणंद जीजीरे ॥ ८ ॥ ढाल पूर्वलीएकादशि वीलसे सुख संसारनारे, दोगुंदुक सुर जेम; अन्य दिवस सुगुरु मुखेरे, देशना निसुणी एम ॥
Jटक–देशना निसुणी एम महातम, बीज प्रमुख तिथिनो अति उत्तम; सांभलीने इहापो करते, जातिसमरण लयु गुणवंते ॥ जी जीणंद जीजीरे ॥ ९॥ ढाल पूर्वली-कर जोडी सुव्रत भणेरे, वर्ष दिवसमा सार; दिवस एक मुज भाषीरे, जेहथी होय भवपार ॥ त्रूटक-जेहथी होय भवपार ते दाखो, गुरु कहे मौन एकादशी राखो; तहत्त करि विधसुं आराधे, मृगशिर शुदि एका-18 दशि साधे ॥ जी जीणंद जीजीरे ॥ १० ॥ ढाल पूर्वली-सेठने सुखीयो देखीनेरे, जन कहे एक धर्मसार; प्रेम सहित आराधियेंरे, कांति विजय जयकार ॥ त्रूटक-कांति विजय जयकार सदाये, नित नित संपत होय सवाइ; एह तिथि सकल तणे मन भावी, पहेली ढाल थइ सुखदाइ। जी जीणंद जीजीरे ॥ ११ ॥
ॐॐॐॐ57-7)
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