Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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ShriMahaveJankrachanaKendra
Acharya Sh Kaisagens
ya mandi
स्तवनम्
श्री भरते अंगदेश ए जिहां चंपानयरी॥ मघवा राजा राज्य करे ए जिणे जीत्यां वयरी ॥ पटराणी रोहिणी रूपें रूअडी ए लक्ष्मी इण नामें ॥ आठ पुत्र जायातिणे ए मनमें सुखपामे ॥ २॥ रोहिण नामें
पुत्रिका ए सबकुं सुखकारी ॥ आठांपुत्रा उपरे ए तिणे लागे प्यारी ॥ वाघे चंद्रतणी कला ए | जिमपक्ष अजुवाले ॥ तिण ते पांचे धायमाय सहु ते प्रतिपालें ॥३॥ कुमरी रूपे रूअडी ए घर
आंगण बेठी ॥ दीठी राजा खेलती ए चित्त चिंता पेठी ॥ तीन भुवन नहीं एहवी ए नवि दुजी नारी ॥रंभा पउमा गवरी ए इण आगले हारी ॥४॥ पुरुष न दीसे एहवो ए तिणने परणाउं ॥3 आंख्यां आगल साल वधे ए मन चैन न पाउं ॥ देश देशना राजवी ए तक्षिण तेडाव्यां ॥ सबल सझाइ साथ करी ए नर पंडित आया ॥५॥ वीतशोक राजातणो ए ऐसो कुमर सोभागी॥ कन्या केरी आंखडी ए तिणसेती लागी ॥ उभां देखे सकल लोक ए चढीया के पाला ॥ चित्र
सेनरे कंठे ठवी ए कुमरी वरमाला ॥६॥ देव अने देवांगना ए जपे जय जय कार ॥ रलियानयत देखीथया ए सारो संसार ॥ करजोडी कहे लोक ए वखत कन्यानो जोडो॥ वीतशोक कुमर
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ASTHANKS
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