Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 396
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीआठ कर्मप्र कृति www.kobatirth.org. ढाल - ५ - पांचमी - भमर भुली - ए देशी ॥ अट्ठावनस्य परीकही सा भमरुली, आठ कर्मनो बंध सा नवरंगी; आठ कर्मनो बंध, सत्तावन | हेतें करी सा भ० लेइ पुद्गल बंध सा नव० आठ० ॥ ए आंकणी ॥१॥ ते सत्तावन सांभलो सा भ० जाणुं पंच मिथ्यात्व सा नव० अभिगहिया णिभिगहिय सुणुं सा भ० अभिनिवेशनी वात सा नव० आठ ॥ २॥ संशय अन्नाणु भणुं सा भ० अविरत बार विचार सा नव० छ काय मन इंद्रीय पंच सा भ० मोर्कल पणुं तिवार सा नव० आठ० ॥ ३ ॥ कषाय पंचवीश कलां, सा भ० जोग पनर तीम जोइ सा नव० चार चार मन वचनना साभ० सात शरीरनां होय सा नव० आठ० ॥ ४ ॥ इम सत्तावन हेतुएं करी साभ० बांध्यां कर्म अनेक सा नव० ते बंधनथी छोडव्यों साभ० श्री जिननायक छेक सा नव० आठ० ॥ ५ ॥ चउराशीलख जीवाजोनी सा भ० भमीयो वार अनंत सा नव० आठ कर्म बंधन करी साभ० ते छोडो भगवंत सा नव० आठ० ॥ ६ ॥ श्री जिनवीरजिणेसरु सा भ० तुं बांधव तुं नाथ | सा नव० माय बाप तुं ठाकरुं सा भ० मुक्ति तणो तुं साथ सा नव० आठ० ॥ ७ ॥ तुं चिंतामण For Pitvale And Personal Use Only Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir बोलवि चार स्तवनम्

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