Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 397
________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendis श्री रोहिणी ॥१९४॥ www.kobarth.org. सुरवेली देव सा नव० मनवंछीत सुख संपदा सा भ० पामीजें तुज सेव सा नव० सुरतरु सा भ० आठ० ॥ ८ ॥ कलश - इम वीर जिनवर सयल सुखकर नयर वडली मंडणो में थुण्यो भक्तें परम जुक्ते रोगशोग विहंडणो ॥ तपगच्छ निर्मल गयणदिणयर श्रीविजयसेन सुरीसरो, कवी कुशलवर्धन शीष्य पभणें नगागणी मंगल करो ॥ १ ॥ "इति श्री आठकर्म प्रकृति बोल विचार स्तवन सम्पूर्ण” "अथ श्री उजमणा निमित्त रोहिणी स्तवन लिख्यते" ढाल - १ - पहेली ॥ सुरतीमासनी ॥ नरक तिरय नरदेवनी आनुपूर्वी ए च्यार ॥ शासनदेवतासामिनी ए मुज सान्निध्यकीजें ॥ भूल्यो अक्षर भगवती ए समाजाइ दीजें ॥ मोटो तप रोहिणीतणो ए तेहना गुणगाउं ॥ जिम सुखसोहग संपदा ए वांछित फल पाउं ॥ १॥ दक्षिण For Pitvale And Personal Use Only Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनम् ॥१९४॥

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