Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
SM Mahavam
A
kende
www.kobateh.org.
Acham Ka B
andit
संयमश्रेणीनुं स्तवनम्
अनंतमो माग बघे एवं प्रथम तेनो अनंतमो भाग वृद्धिरुप बीजुं एम यथोत्तरे कंडक प्रमाण होय ॥ इम आगल पण पाछला स्थानकथी आगला स्थानकमा भागवृद्धि तथा गुणवृद्धि पोतानी बुद्धिए जाणवू ॥८॥ | गाथा-इम अनंत भाग वृद्धिनेजी, कंडक कंडक मध्य; ठाणअसंख्य अंश द्धिनांजी, कंडक मानें लद्द० गुणो दधिः मेरु०॥९॥
भावार्थ:-इम अनंत भाग वृद्धिनां कंडक प्रमाण स्थानक अने असंख्यात भाग वृद्धिनुं एक स्थानक ए रीते अनंत भाग वृद्धि कंडक कंडकने विचाले असंख्यात भाग वृद्धिनुं एक एक स्थानक करता असंख्यात भाग वृद्धिनां स्थानक केटला होय ते कहेछे कंडक प्रमाणे लाधां एटले एक कंडक प्रमाण थयां एटले षट् वृद्धि माहिं असंख्यभाग वृद्धिरुप बीजी वृद्धि पूरी थइ ॥९॥
गाथा-ते आगे अनंत भागनांजी, स्थानक कंडक मात; तदनंतर संख्यभागनुंजी, स्थानक एक विख्यात० गुणो दधि० मेरु० ॥१०॥
4-%CE%4%95-
5
म क
For Pale And Personal use only