Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 379
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री देवलोक ॥१८५॥ %% % %% www.kobatirth.org. ॥ जिनजीने ॥ ३ ॥ शुक्र देवलोक सातमे, सहस्स चालीश विमानछे तेहमें; घंटा चालीश हजार, लाख बहोंतेर बिंब विस्तार ॥ जिनजीने ॥ ४ ॥ सहस्सार आठमुं कहीए, छ हजार विमान ते लहीए; जिन प्रासाद छ हजार, दशलाख संहस्स एंसि सार ॥ जिनजीने ॥ ५॥ ॥ ढाल - ३- त्रीजी ॥ एकवार वच्छदेश आवजो जिणंदजी - एकवार ॥ ए देशी ॥ एकवार दरिशण दीजीए जिणंदजी, एकवार दरिशण दीजीए ॥ देवलोकनां सुख दीजीए जिणंदजी ॥ एकवार ॥ ए टेक ॥ नवमुं आनतदेवलोक जाणो, तिहां बस्ये विमानछे जिणंदजी; प्रासाद बस्थे छे अतिमोटा, सहस्स छत्तीस जिणंद छे जिणंदजी ॥ एकवार ॥१॥ दशमें प्राणतछे ए भलेलं, बस्यें विमान ते सारछे जिणंदजी ॥ प्रासाद पण एहवी रीते, बिंब छत्तीस हजारछे जिणंदजी ॥ एकवार ॥२॥ इग्यारमें आरणदेवलोके, दोढसो विमान अभंगछे जिणंदजी ॥ चैत्यादिक एणिविध जाणो, बिंब सहस्स सत्तावीस रंगछे जिणंदजी ॥ एकवार ॥ ३ ॥ For Pivate And Personal Use Only Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनम ॥१८५॥

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