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श्री देवलोक
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॥ जिनजीने ॥ ३ ॥ शुक्र देवलोक सातमे, सहस्स चालीश विमानछे तेहमें; घंटा चालीश हजार, लाख बहोंतेर बिंब विस्तार ॥ जिनजीने ॥ ४ ॥ सहस्सार आठमुं कहीए, छ हजार विमान ते लहीए; जिन प्रासाद छ हजार, दशलाख संहस्स एंसि सार ॥ जिनजीने ॥ ५॥
॥ ढाल - ३- त्रीजी ॥ एकवार वच्छदेश आवजो जिणंदजी - एकवार ॥ ए देशी ॥
एकवार दरिशण दीजीए जिणंदजी, एकवार दरिशण दीजीए ॥ देवलोकनां सुख दीजीए जिणंदजी ॥ एकवार ॥ ए टेक ॥ नवमुं आनतदेवलोक जाणो, तिहां बस्ये विमानछे जिणंदजी; प्रासाद बस्थे छे अतिमोटा, सहस्स छत्तीस जिणंद छे जिणंदजी ॥ एकवार ॥१॥ दशमें प्राणतछे ए भलेलं, बस्यें विमान ते सारछे जिणंदजी ॥ प्रासाद पण एहवी रीते, बिंब छत्तीस हजारछे जिणंदजी ॥ एकवार ॥२॥ इग्यारमें आरणदेवलोके, दोढसो विमान अभंगछे जिणंदजी ॥ चैत्यादिक एणिविध जाणो, बिंब सहस्स सत्तावीस रंगछे जिणंदजी ॥ एकवार ॥ ३ ॥
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स्तवनम
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