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________________ % mins % % देवलोक % % %25A ढाल-४-चोथी॥ क्षण क्षण सांभरो शांति सलुणा-ए देशी ॥ स्तवनम् घडी घडी सांभरो देव सलुणा, जस करे सुरनर सेव सलुणा ॥ घडी घडी ॥ ए टेक ॥ वारमुं। अच्युत देवलोक जाणो, ते मांहे सुखकार सलुणा० ॥ दोढसो विमान ते राजे, दोढसो चैत्य जुहार सलुणा ॥ घडी घडी ॥१॥ सहस्स सत्तावीश जिनबिंब पूजो, दोढसो घंटा वाजे सलुणा०॥ चैत्य मध्ये जिनराजजी बेठा, वंदो जिनजीने राजे सलुणा० ॥ घडी घडी ॥ २॥ सर्व देवलोक बार मलीने, संख्या प्रासादनी कहुं सलुणा० ॥ चोरासी लाख ने छन्नुहजार, सातसें प्रासाद ते लहुँ। सलुणा० ॥ घडी घडी ॥ ३ ॥ प्रासाददिठ शतएंसि प्रतिमा, सर्व मली कहुं सार सलुणा० ॥ एकसोकोड ने बावन्नकोड, लाख चोराणुं छ हजार सलुणा०॥ घडी घडी ॥४॥ इत्यादिक जिनवरनी संख्या, कही सूत्र तणे अनुसंत सल्लुणा० ॥ पंडीत फत्तेहसागर तणोरे, पामे चतुर सुख अनंत सलुणा० ॥ घडी घडी ॥ ५॥ RC%2-% % For And Personal use only 2
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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