Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 389
________________ C श्री वैमा- गरीबनीवाजमहाराज अरज दिलमां धरो हो लाल के० अरज, सेवक जाणी आपणो प्रभु करुणा || स्तवनम निकजिन करो हो लाल के० प्रभु ॥ मात सहोदर साहिब माहरा हो लाल के० माहरा, तार तार भवसायरजि| ॥१९॥ सुरजन ताहरा हो लाल के० सुरजन ॥६॥ बारिजामंडण आदिजिणंद सुपसाउले हो लाल के० जिणंद, वैमानिक जिन संथुण्या बहु उमाहले हो लाल के० बहु० ॥ संकट विकट दुःख दोहग दुरित दुरे टले हो लालके० दुरित, ऋद्धि सिद्धि धनवृद्धि सदा आवीमलें हो लाल के० सदा ॥७॥ RT कलश-इय त्रिजगनायक सुखदायक वारेजापुर मंडणो, श्री रिसहेसर प्रथम ज़िनवर दुःख, दोहग खंडणो ॥ संवत् विधुमुनि जलधि नगयुत पौसशुदि बीज सुरगुरो, कवि संघविजय बुध दिप्ती विनयी नेमी विजय मंगल करो ॥१॥ ॥ इति श्री वैमानिक जिनराज स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॐॐॐॐॐॐ2-% ॥१९॥ For And Personal use only

Loading...

Page Navigation
1 ... 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411